यह ब्लॉग आपको मानव जीवन में योग, ध्यान और प्राणायाम के प्रभाव का विवरण देता है। हम योग के उद्देश्य से आपके लिए कुछ शोध लेख भी प्रकाशित करेंगे। यदि आप इस ब्लॉग का अनुसरण करते हैं, तो आपको अपने स्वास्थ्य और कल्याण के लिए सर्वोत्तम योग सलाह और आसन प्राप्त होंगे। योग शिविर और सहकारी कक्षाओं और व्यक्तिगत योग प्रशिक्षण सत्रों के लिए, कृपया 8882916065 पर कॉल करें या noopmlib@gmail.com पर मेल करें।
पार्किंसंस रोग के
लक्षण अलग-अलग होते हैं। विशिष्ट लक्षण निम्न का संयोजन हैं
शुरुआती लक्षण अस्पष्ट
और गैर-विशिष्ट हो सकते हैं, जिससे निदान करना मुश्किल हो जाता है। इनमें शामिल हो
सकते हैं:
थकान रहना, बेचैनी
होना
तनावग्रस्त रहना
स्थानीयकृत मांसपेशी
दर्द
पार्किंसंस रोग के
साथ आपमें विकसित होने वाले अन्य लक्षण आपके चलने-फिरने के तरीके को प्रभावित करते
हैं, जैसे:
संतुलन की कमी
बोलने में परेशानी
लिखने में दिक्कत होना
खाना निगलने में दिक्कत
निम्न रक्तचाप, विशेषकर
जब लेटने से बैठने, या बैठने से खड़े होने की ओर जा रहा हो
गैर-गतिशीलता लक्षण
भी हैं, जैसे:
नींद की समस्याएँ,
जिनमें अपने सपनों को साकार करना और नींद में बातें करना शामिल है
कब्ज़, अपच
विचारों का धीमा होना
चिंता और अवसाद
गंध की अनुभूति में
कमी
थकान बनी रहना
अत्यधिक लार का उत्पादन
पार्किंसंस रोग के
कई लक्षण अन्य स्थितियों के कारण हो सकते हैं। यदि आप अपने लक्षणों के बारे में चिंतित
हैं, तो अपने डॉक्टर से मिलना एक अच्छा विचार है।पार्किंसंसरोगसेपीड़ितअधिकांशलोगोंकानिदान 65 वर्षकीआयुकेआसपासकियाजाताहै,
लेकिननिदानकिएगए 10 मेंसे
1 व्यक्ति 45 वर्षसेकमउम्रकाहोताहै।
फलों, सब्जियों और
अनाजों से भरपूर उच्च फाइबर युक्त आहार खाने और खूब पानी पीने से पार्किंसंस रोग में
अक्सर होने वाली कब्ज को रोकने में मदद मिल सकती है। कब्ज को ठीक करने के लिए चोकर
युक्त आटा खाये
जंक फूड और अनहेल्दी
चीजें खाने से समस्या ज्यादा बढ़ सकती है. अत्यधिक कैफीन, प्रोसेस्ड फूड और रिफाइंड
शुगर जैसे खाद्य पदार्थों का इस्तेमाल मेंटल हेल्थ के लिए समस्या पैदा कर सकता है ।
पार्किंसनरोग से जूझ रहे लोगों
को जानकार हमेशा हेल्दी डाइट लेने की सलाह देते हैं।
योगाचार्य डॉ अनूप
कुमार बाजपाई
संस्थापक
आयुष योग एवं वैलनेस
क्लिनिक
गुडगाँव, हरियाणा
8882916065 email
yogawithanu@gmail.com
अधिक जानकारी के लिए
अपने सुझाव और परामर्श के लिए आप ईमेल और मोबाइल के माध्यम से जुड़ सकते है
गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामायण के उतरकांड में वर्णन किया है
लोभसेकफऔरक्रोधसेपित्त
मनुष्यकेरोगोंकावर्णनकरतेहुएकाककहतेहैंकि, मोहसकलब्याधिन्हकरमूला।तिन्हतेपुनिउपहहिंबहुसूला।।कामबातकफलोभअपारा।क्रोधपित्तनितछातीजारा।।इसदोहेमेंकाक भुशुंडि जी गरुङ जी को
भावार्थ:-मनुष्य शरीर के समान कोई शरीर नहीं है। चर-अचर सभी जीव उसकी याचना करते हैं। वह मनुष्य शरीर नरक, स्वर्ग और मोक्ष की सीढ़ी है तथा कल्याणकारी ज्ञान, वैराग्य और भक्ति को देने वाला है॥5॥
* सो तनु धरि हरि भजहिं न जे नर। होहिं बिषय रत मंद मंद तर॥
काँच किरिच बदलें ते लेहीं। कर ते डारि परस मनि देहीं॥6॥
भावार्थ:-ऐसे मनुष्य शरीर को धारण (प्राप्त) करके भी जो लोग श्री हरि का भजन नहीं करते और नीच से भी नीच विषयों में अनुरक्त रहते हैं, वे पारसमणि को हाथ से फेंक देते हैं और बदले में काँच के टुकड़े ले लेते हैं॥6॥
चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य के शासनकाल में भारतीय मनीषियों ने कालगणना के लिए ब्रह्माण्ड का बहुत सूक्ष्मता से अध्ययन करते हुए भारतीय वैदिक ज्योतिष के आधार पर पंचांग बनाया।
पंचांग के पाँच अंग होते हैं- ‘तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण।’
इन पाँच अंगों के योग के कारण ही इसे पंचांग कहा जाता है।
हम मनुष्यों की देह भी पंचतत्व का योग है, यदि हमारे पाँच तत्व कालगणना के पाँच अंगों की लय से लय मिलाकर चलते हैं तब हमारा जीवन प्रलय का भागी नहीं होता क्योंकि प्रकृति की लय से लय टूटना ही प्रलय कहलाता है। इसलिए हिन्दू धर्म में पंचांग को परामर्शदाता कहा जाता है इसके परामर्श के बिना कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते।
नव रात्रि और नव वर्ष के इस पावन अवसर पर परमब्रह्म परमात्मा से प्रार्थना है कि वे हमें भक्ति, शक्ति, युक्ति से सम्पन्न करें जिससे हम सोमवार से लेकर रविवार तक सातों वारों को शुचितापूर्वक साधते हुए अपने-अपने परिवारों का समुचित रक्षण, भरण, पोषण करते हुए अपने जीवन के प्रत्येक क्षण को सार्थकता प्रदान कर सकें। आप सभी को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं शुभम भवतु~# कॉपी फ्रॉमआशुतोष_राना 🌹🙏😊
व्रत रखते हुएपहली पूजा में दूध, गंगाजल, केसर, शहद और जल से बना मिश्रण शिवलिंग पर अर्पित करना चाहिए। शिवरात्रि पर चार पहर पूजा का विशेष फल मिलता है। ऐसे में चार पहर पूजा कर रहे हैं, तो आप पहले पहर जल से, दूसरे पहल दही, तीसरे पहर घी, और चोथे पहर शहर से शिवलिंग का अभिषेक करें। तिलक चंदन से लगाएं और फिर भस्म अर्पित करें।