International Yoga Day Newsletter
hindihttps://yoga.ayush.gov.in/IDY/idy-2025-newsletter/idy-newsletter-issue-1-hindi
CYP
https://yoga.ayush.gov.in/api/uploads/assets/cyp/Common%20Yoga%20Protocol%20Book-Hindi.pdf
https://yoga.ayush.gov.in/yoga-sangam
"2025 में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस (आईडीवाई) एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर होगा-योग को एक वैश्विक आंदोलन के रूप में बढ़ावा देना जो शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक कल्याण को बढ़ाता है। आई. डी. वाई. ने सफलतापूर्वक 10 वर्ष पूरे कर लिए हैं और 2025 में हम 11वीं आई. डी. वाई. को सही मायने में वैश्विक और समावेशी तरीके से मना रहे हैं। 'योग संगम' या मुख्य आई. डी. वाई. कार्यक्रम 21 जून 2025 को सुबह साढ़े छह बजे से सुबह साढ़े सात बजे तक पूरे भारत में एक लाख से अधिक स्थानों पर सामान्य योग प्रोटोकॉल (सी. वाई. पी.) के आधार पर एक समन्वित सामूहिक योग प्रदर्शन का आयोजन करेगा। राष्ट्रीय कार्यक्रम का नेतृत्व माननीय प्रधानमंत्री आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में करेंगे। इस सामूहिक उत्सव का उद्देश्य योग के कालातीत अभ्यास और आज की दुनिया में इसकी स्थायी प्रासंगिकता के प्रति हमारी साझा प्रतिबद्धता की पुष्टि करना है।
“The International Day of Yoga (IDY) in 2025 will mark a significant milestone — promoting yoga as a global movement that enhances physical, mental, and spiritual well-being. IDY has successfully completed 10 years, and in 2025, we are celebrating the 11th IDY in a truly global and inclusive manner. ‘Yoga Sangam’ or the main IDY event will orchestrate a synchronized mass yoga demonstration based on the Common Yoga Protocol (CYP) at over 1 lakh locations across India on 21st June 2025 from 6:30 AM to 7:45 AM. The National Event will be led by the Hon’ble Prime Minister at Visakhapatnam, Andhra Pradesh. This collective celebration aims to reaffirm our shared commitment to the timeless practice of yoga and its enduring relevance in today's world.”
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'योग संगम' या मुख्य आई. डी. वाई. कार्यक्रम का आयोजन 21 जून 2025 को पूरे भारत में विभिन्न स्थानों पर सुबह साढ़े छह बजे से सुबह साढ़े सात बजे तक किया जाएगा। यह पिछले वर्षों की तरह ही आयोजित किया जा रहा है, जिसमें आयुष मंत्रालय द्वारा इस पोर्टल पर घटनाओं पर नज़र रखने के लिए एक सुविधा जोड़ी गई है। ये कार्यक्रम राष्ट्रीय कार्यक्रम के साथ-साथ होंगे, जिसका नेतृत्व आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम से माननीय प्रधानमंत्री करेंगे। 'योग संगम' को जन योग प्रदर्शनों की परंपरा को जारी रखने के लिए डिज़ाइन किया गया है, साथ ही इसे पहुंच और सार्वजनिक भागीदारी के अभूतपूर्व स्तर तक बढ़ाया गया है।
समग्र कल्याण को बढ़ावा देने वाला कोई भी संगठन योग संगम सत्र की मेजबानी के लिए पंजीकरण कर सकता है। हम सरकारी संगठनों, शैक्षणिक संस्थानों, निजी संस्थाओं, निवासी कल्याण संघों (आर. डब्ल्यू. ए.), गैर सरकारी संगठनों, सामुदायिक समूहों और ऐसे अन्य सभी इच्छुक दलों को पंजीकरण के लिए आमंत्रित करते हैं।
आयोजकों से अनुरोध है कि वे योग पोर्टल (https://yoga.ayush.gov.in) पर जाएँ और कार्यक्रम के बाद का फीडबैक फॉर्म जमा करें। उनसे प्रतिभागियों की संख्या के बारे में विवरण जमा करने और कार्यक्रम की तस्वीरें अपलोड करने का अनुरोध किया जाता है।
Specific benefits of daily exercise:
Weight Management:
Walk daily-
Yoga-Yoga offers numerous benefits for physical and mental health, including improved flexibility, strength, balance, and stress reduction, as well as enhanced focus, sleep quality, and a stronger mind-body connection. Regular practice can also help manage chronic pain, improve cardiovascular health, and support weight management
Healthy eating- Healthy eating focuses on consuming a balanced and varied diet that provides the body with the nutrients it needs to function properly and maintain good health. This includes prioritizing fruits, vegetables, whole grains, lean proteins, and healthy fats while limiting saturated and trans fats, added sugars, and sodium
Meditation- Meditation offers numerous benefits, including reducing stress, improving focus, boosting emotional health, and enhancing sleep quality. It can also strengthen the immune system, increase self-awareness, and even help with pain management and addiction recovery. Here's a more detailed look at the benefits:
No junk food-chips, colddrinks and others
Less salt- please take less salt. it is better for your heart health
#healthylifestyle #health #healthyfood #haryana
जीवन में समस्याएं आना आम है। लेकिन इनसे घबराने की बजाय, इनका सामना करने और अपनी ज़िंदगी को बेहतर बनाने के कई तरीके हैं।
यहाँ कुछ सुझाव दिए गए हैं:
* सकारात्मक सोच: मुश्किल समय में भी सकारात्मक रहने की कोशिश करें। नकारात्मक विचारों को दूर भगाएं और अपने लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करें।
* समस्या का समाधान ढूंढें: समस्या से भागने की बजाय, इसका समाधान ढूंढने की कोशिश करें। छोटे-छोटे कदम उठाकर शुरू करें और धीरे-धीरे आगे बढ़ें।
* नई चीजें सीखें: नई चीजें सीखना आपको व्यस्त रखने के साथ-साथ आपके आत्मविश्वास को भी बढ़ाता है।
* दूसरों से बात करें: अपने मन की बात किसी दोस्त, परिवार के सदस्य या किसी काउंसलर से शेयर करें। इससे आपको बेहतर महसूस होगा।
* स्वयं पर ध्यान दें: अपनी सेहत का ख्याल रखें, नियमित रूप से व्यायाम करें और पर्याप्त नींद लें।
* अपने लक्ष्यों को निर्धारित करें: अपने लिए कुछ लक्ष्य निर्धारित करें और उन्हें प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करें।
* आभार व्यक्त करें: हर दिन उन चीजों के लिए आभार व्यक्त करें जिनके लिए आप धन्यवाद करते हैं।
याद रखें: जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। महत्वपूर्ण यह है कि आप इनसे कैसे निपटते हैं।
अगर आपको और अधिक मदद चाहिए तो आप किसी मनोवैज्ञानिक या काउंसलर से संपर्क कर सकते हैं।
क्या आप किसी विशिष्ट समस्या के बारे में बात करना चाहते हैं?
मुझे उम्मीद है कि यह जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी।
अन्य किसी प्रश्न के लिए आप मुझसे पूछ सकते हैं।
उपनिषद--कठोपनिषद के सूत्र की व्याख्या
ऊर्ध्वं प्राणमन्नयत्यपानं प्रत्यगस्यति।
मध्ये वामनमासीनं विश्वे देवा उपासते।। 3।।
जो प्राण को ऊपर की ओर उठाता है और अपान को नीचे ढकेलता है शरीर के मध्य हृदय में बैठे हुए उस सर्वश्रेष्ठ भजने योग्य परमात्मा की सभी देवता उपासना करते हैं।
भारतीय #योग की एक गहरी खोज इस सूत्र में छिपी है।
पश्चिम का चिकित्साशास्त्र, मेडिकल साइंस अभी भी इस संबंध में करीब—करीब अपरिचित है। यह खोज है प्राण और अपान की।
भारतीय चिकित्साशास्त्र #आयुर्वेद, योग, #तंत्र, इन सबकी यह प्रतीति है कि शरीर में वायु की दो दिशाएं हैं। एक दिशा ऊपर की ओर है, उसका नाम प्राण। और एक दिशा नीचे की ओर है, उसका नाम अपान।
शरीर में वायु का दोहरा रूप है और दो तरह की धाराएं हैं। जो मल—मूत्र विसर्जित होता है, वह अपान के कारण है। वह जो नीचे की तरफ वायु बह रही है, वही #मल—मूत्र को नीचे की तरफ अपनी धारा में ले जाती है। और जीवन में जितनी भी ऊपर की तरफ जाने वाली चीजें हैं, वे सब प्राण से जाती हैं।
इसलिए जो जितना ज्यादा #प्राणायाम को साध लेता है, उतना ऊपर उठने में कुशल हो जाता है। क्योंकि ऊपर जाने वाली धारा को विस्तार कर रहा है, फैला रहा है, बड़ा कर रहा है।
ये दो धाराएं हैं, दो करेंट हैं #वायु के, शरीर के भीतर। और इन दोनों के मध्य स्थित है परमात्मा, या आत्मा, या चेतना, या जो भी नाम आप देना चाहें।
वह जो अंगुष्ठ आकार का #आत्मा है, वह इन दोनों धाराओं के बीच में उपस्थित है। वही वायु को नीचे की तरफ धकाता है, वही वायु को ऊपर की तरफ धकाता है।
#प्राण—ऊपर की तरफ जाने वाली वायु।
#अपान—नीचे की तरफ जाने वाली वायु।
पश्चिम का चिकित्साशास्त्र अभी भी इस दोहरी धारा को नहीं पहचान पाया है। उनका खयाल है, वायु एक ही तरह की है। इसलिए वायु के आधार पर जो बहुत—से काम आयुर्वेद कर सकता है, वह ऐलोपैथी नहीं कर सकती। वायु की इन धाराओं को ठीक से समझ लेने वाला व्यक्ति जीवन में बड़ी क्रातिया कर सकता है।
छोटा बच्चा #श्वास लेता है, तो आपने देखा है कि जब छोटा बच्चा श्वास लेता है तो उसका पेट ऊपर—नीचे जाता है। बच्चा लेटा है, श्वास लेता है, तो पेट ऊपर जाता है, नीचे जाता है। छाती पर कोई हलन—चलन भी नहीं होती। उसकी श्वास बड़ी गहरी है। आप जब श्वास लेते हैं तो सीना ऊपर उठता है, नीचे गिरता है। आपकी श्वास उथली है,गहरी नहीं है।
मनसविद बड़े हैरान हैं कि यह घटना क्यों घटती है? उम्र बढ़ने के साथ श्वास उथली क्यों हो जाती है? और बच्चे की श्वास गहरी क्यों होती है? जानवरों की श्वास भी गहरी होती है। जंगली आदमियों की श्वास भी गहरी होती है। जितना सभ्य आदमी हो, उतनी उथली श्वम्म हो जाती है।
बड़ी मुश्किल की बात है कि सभ्यता से श्वास का ऐसा क्या संबंध होगा? और वह कौन—सी घड़ी है जब से बच्चा गहरी श्वास लेना बंद कर देता है?
योग इस राज को जानता है। और यह राज अब मनोविज्ञान को भी थोड़ा— थोड़ा साफ होने लगा है। क्योंकि मनोवैशानिक कहते हैं कि बच्चे को जिस दिन से काम का भय पैदा हो जाता है, वासना का भय मां —बाप जिस दिन से उसे सचेत कर देते हैं सेक्स के प्रति, उसी दिन से उसकी श्वास उथली हो जाती है। क्योंकि श्वास जब गहरी जाती है, तो कामकेंद्र पर चोट करती है। वह अपान बन जाती है। और कामवासना को जगाती है।
जितनी गहरी श्वास होगी, उतनी कामवासना सतेज होगी। बच्चे भयभीत कर दिए जाते हैं कि काम बुरा है,सेक्स पाप है। वे घबरा जाते हैं। तो अपनी श्वास को ऊपर सम्हालने लगते हैं, वे उसको गहरा नहीं जाने देते। फिर धीरे— धीरे उनकी श्वास सिर्फ ऊपर—ऊपर चलने लगती है। उनके कामकेंद्र और स्वयं के बीच एक फासला हो जाता है।
ऐसे व्यक्तियों के जीवन में कामवासना विकृत हो जाती है। वे संभोग का किसी तरह का भी सुख नहीं ले पाते, क्योंकि संभोग के लिए बड़ी गहरी श्वास जरूरी है।
और जब गहरी श्वास हो, तो पूरा शरीर आदोलित होता है। और शरीर के पूरे आदोलन में, शरीर के पूरी तरह समाविष्ट हो जाने में इस प्रक्रिया में, पूरी तरह डूब जाने से, थोड़ा—बहुत सुख का आभास मिलता है। लेकिन वह आभास भी असंभव हो जाता है, क्योंकि श्वास इतनी गहरी नहीं जाती। और न—मालूम कितनी बीमारियां इसके साथ पैदा होती हैं, क्योंकि आपका अपान कमजोर हो जाता है।
जो लोग भी उथली श्वास लेते हैं, उनको कब्जियत हो जाएगी। क्योंकि अपान, जो वायु नीचे जाकर मल को विसर्जित करती है, वह वायु नीचे नहीं जा रही है। लेकिन डर वही है। क्योंकि वीर्य भी मल है उसको भी निष्कासित करने के लिए वायु को नीचे तक जाना चाहिए। अपान बनना चाहिए। तो जो व्यक्ति भी डरेगा सेक्स से, उसको कब्जियत भी पकड़ लेगी। क्योंकि वह एक ही वायु दोनों को धक्का देती है।
ब्रह्मचर्य का प्रयोग अपान को रोकने से नहीं होता। ब्रह्मचर्य का प्रयोग प्राण को बढ़ाने से होता है। इस फर्क को ठीक से समझ लें। हम सारे लोगों ने ब्रह्मचर्य के नाम पर गलत कर लिया है और अपान को रोक लिया है। उसकी वजह से हम सिर्फ रुग्ण और बीमार हो गए हैं। हमारे व्यक्तित्व की जो गरिमा और जो स्वास्थ्य हो सकता था, वह नष्ट हो गया है। और शरीर न—मालूम कितने जहर से भर जाता है। क्योंकि जो अपान सारे जहरों को शरीर के बाहर फेंकती है, वह नहीं फेंक पाती। आप डरे हुए हैं। ब्रह्मचर्य की यह निषेधात्मक प्रक्रिया है—निगेटिव।
एक विधायक प्रक्रिया है—अपान को मत छेड़े, प्राण को बढ़ाए। प्राण इतना ज्यादा हो जाए कि अपान उसके मुकाबले बिलकुल छोटा हो जाए। एक बड़ी लकीर खींच दें। तो अपान शुद्ध रहे और प्राण विराट हो जाए, तो आपकी ऊर्जा ऊपर की तरफ बहने लगे।
इसलिए प्राणायाम का इतना उपयोग है योग में, क्योंकि प्राणायाम धक्के देता है ऊपर की तरफ ऊर्जा को। जो काम—ऊर्जा अपान के द्वारा सेक्स बनती है, वही काम—ऊर्जा प्राण के द्वारा कुंडलिनी बन जाती है। वह ऊपर की तरफ बहने लगती है। और ऊपर की तरफ बहते—बहते मस्तिष्क में जाकर उसका कमल खिल जाता है।
अपान के धक्के से वही कामवासना किसी बच्चे का जन्म बनती है, प्राण के धक्के से वही कामवासना आपका स्वयं का नया जन्म बन जाती है—लेकिन मस्तिष्क तक आ जाए तब। तो प्राण उसे ऊपर की तरफ लाता है।
यह सूत्र कह रहा है कि प्राण और अपान दोनों के बीच में छिपा है वह परमात्मा, जिसके संबंध में तुमने पूछा था। वही नीचे की तरफ अपान को ले जाता है, वही प्रकृति का आधार है। और वही प्राण को ऊपर की तरफ ले जाता है, वही परलोक का आधार है। यह तेरे ऊपर निर्भर है कि तू किस धारा में प्रविष्ट होना चाहता है। अगर तू नीचे की धारा में प्रविष्ट होना चाहता है, तो तुझे अपान को बढ़ाना होगा।
सभी पशुओं का अपान बड़ा प्रबल होता है, उनका प्राण बहुत निर्बल होता है। सिर्फ योगियों का प्राण सबल होता है। अपान स्वस्थ होता है और प्राण इतना सबल होता है कि अपान, स्वस्थ अपान भी उस पर कब्जा नहीं कर पाता;कब्जा प्राण का ही होता है। साधारण आदमी का प्राण तो कमजोर होता ही है, वह अपान भी कमजोर कर लेता है, डर और भय के कारण।
भयभीत आदमी गहरी श्वास नहीं लेता। सिर्फ निर्भय आदमी गहरी श्वास लेता है। किसी भी कारण से डरा हुआ आदमी गहरी श्वास नहीं लेता। कोई आदमी आपकी छाती पर छुरा लाकर रख दे, श्वास रुक जाएगी। जब भी आप भयभीत होंगे, श्वास रुक जाएगी। जहा भी आप घबड़ा जाते हैं, किसी से मिलने गए हैं, किसी बड़े आफिसर से और घबड़ा गए हैं, बस श्वास उथली हो जाती है, ऊपर—ऊपर चलने लगती है। फिर आप बाहर आकर ही ठीक से श्वास ले पाते हैं।
हम इतना डरा दिए हैं एक—दूसरे को कि हमारा सब श्वास का पूरा यंत्र—जाल अस्वस्थ हो गया है। दोनों के बीच में छिपा है परमात्मा, दोनों का मालिक वही है।
अपान से डरने की कोई भी जरूरत नहीं, क्योंकि शरीर का सारा स्वास्थ्य उस पर निर्भर है। निष्कासन उसका काम है। और अगर निष्कासन ठीक न हो, तो शरीर में जहर टाक्सिन्स इकट्ठे हो जाएंगे। और वे इकट्ठे हो गए हैं। हर आदमी के खून में जहर चल रहा है।
व्यायाम कोई आदमी करे, दौड़े, चले, तैरे, तो अपान सबल हो जाता है। इसलिए शरीर में एक ताजगी और स्वास्थ्य आ जाता है। लेकिन कोई गहरी श्वास लें—प्राणायाम सिर्फ गहरी श्वास नहीं है, प्राणायाम बोधपूर्वक गहरी श्वास है। इस फर्क को ठीक से समझ लें। बहुत से लोग प्राणायाम भी करते हैं, तो बोधपूर्वक नहीं, बस गहरी श्वास लेते रहते हैं।
अगर गहरी श्वास ही आप सिर्फ लेंगे, तो अपान स्वस्थ हो जाएगा। बुरा नहीं है, अच्छा है। लेकिन ऊर्ध्वगति नहीं होगी। ऊर्ध्वगति तो तब होगी जब श्वास की गहराई के साथ आपकी अवेयरनेस, आपकी जागरूकता भीतर जुड़ जाए।
बुद्ध ने कहा है, श्वास चले, नाक को छुए, तब तुम जानो कि नाक छू रही है। भीतर चले, नासापुटों में स्पर्श हो, जानो कि नासापुटों में स्पर्श हो रहा है। कंठ में उतरे, जानो कि कंठ में स्पर्श हो रहा है। फेफड़ों में आए, नीचे जाए,पेट तक पहुंचे, तुम देखते चले जाओ, उसके पीछे—पीछे ही तुम्हारी स्मृति लगी रहे। फिर एक क्षण को रुक जाएगी—गैप। वह गैप बड़ा कीमती है।
जब आप श्वास गहरी लेंगे, एक क्षण को जब भीतर पहुंच जाएंगे, एक क्षण को कोई श्वास नहीं होगी,। बाहर न भीतर। सब ठहर जाएगा। फिर श्वास बाहर लौटेगी। एक सेकेंड विश्राम करके फिर बाहर तरफ चलेगी, तब तुम भी उसके साथ बाहर चलो। उठो, उसी के साथ। आओ कंठ तक, आओ नाक तक। बाहर निकल जाए, उसका पीछा करते रहो। फिर बाहर जाकर एक सेकेंड को सब ठहर जाएगा। फिर नई श्वास शुरू होगी। फिर भीतर, फिर बाहर।
बुद्ध ने कहा है, तुम इसको माला बना लो और तुम इसी के गुरियों के साथ अपने स्मरण को जगाते रहो। अगर गहरी श्वास के साथ बोध हो, तो प्राण का विस्तार होता है, और जीवन—ऊर्जा की गति ऊपर की तरफ होनी शुरू हो जाती है।
बोध ऊपर का सूत्र है, मूर्च्छा नीचे का सूत्र है।
अगर कोई व्यक्ति निरंतर, जब भी उसे स्मरण आ जाए, सिर्फ श्वास पर बोध को साधता रहे, तो किसी और साधना की जरूरत नहीं। उतना काफी है। पर वह बड़ा कठिन है। चौबीस घंटे, जब भी खयाल आ जाए, तो श्वास को?.। किसी को पता भी नहीं चलेगा, चुपचाप यह हो सकता है। किसी को खबर भी नहीं होगी कि आप क्या कर रहे हैं। किसी को भी पता नहीं चलेगा।
#जीसस ने कहा है कि तुम्हारा बायां हाथ जब कुछ करे, तो दाएं हाथ को पता न चले।
यह इस तरह की प्रक्रिया है, जिसमें किसी को भी पता नहीं चलेगा। तुम चुपचाप अपनी श्वास के साथ धीरे—धीरे स्मृति से भरते चले जाओगे। और जैसे—जैसे स्मृति गहन होगी, श्वास गहरी होगी, वैसे—वैसे उसकी चोट स्मरणपूर्वक तुम्हारी ऊर्जा को रीढ़ के मार्ग से ऊपर की तरफ उठाने लगेगी। और यह कोई कल्पना की बात नहीं है, तुम अपनी रीढ़ में निश्चित रूप से विद्युत की धारा को उठता हुआ पाओगे। तरंगें तुम्हारी रीढ़ में दौड़ने लगेंगी।
वे तरंगें उत्तप्त होंगी। और तुम चाहो तो तुम अपने हाथ से छूकर देख भी सकते हो, जहा तरंगें होंगी वहां रीढ़ गरम हो जाएगी। और जैसे—जैसे यह गर्म ऊर्जा ऊपर की तरफ उठेगी, तुम्हारी रीढ़ उत्तप्त होने लगेगी। तुम अनुभव करोगे कि कहा तक जाती है यह ऊर्जा। फिर गिर जाती है, फिर जाती है।
निरंतर अभ्यास से एक दिन यह #ऊर्जा तुम्हारे ठीक #सहस्रार तक पहुंच जाती है। लेकिन इस बीच यह और #चक्रों से गुजरती है और हर चक्र के अपने अनुभव हैं। हर चक्र पर तुम्हारे जीवन में नया प्रकाश, और हर चक्र से जब यह ऊर्जा गुजरेगी तो तुम्हारे जीवन में नई #सुगंध, नए अर्थ, नए अभिप्राय प्रगट होने लगेंगे। नए फूल खिलने लगेंगे।
योगशास्त्र ने पूरी तरह निश्चित किया है—हजारों —लाखों प्रयोग करने के बाद—कि हर केंद्र पर क्या घटता है। एक—दो उदाहरण, ताकि खयाल में आ जाए। और उसी हिसाब से इन #केंद्रों के, चक्रों के नाम रखे हैं।
जैसे दोनों आंखों के बीच में जो चक्र है, उसको योग ने #आज्ञा—चक्र कहा है। उसको आज्ञा—चक्र इसलिए कहा है कि जिस दिन तुम्हारी ऊर्जा उस चक्र से गुजरेगी, तुम्हारा #शरीर, तुम्हारी #इंद्रियां तुम्हारी #आज्ञा मानने लगेंगी। तुम जो कहोगे, उसी #क्षण होगा। तुम्हारा #व्यक्तित्व तुम्हारे हाथ में आ जाएगा, तुम #मालिक हो जाओगे।
इस चक्र के पहले तुम गुलाम हो। इस चक्र में जिस दिन ऊर्जा प्रवेश करेगी, उस दिन से तुम्हारी मालकियत हो जाएगी। उस दिन से तुम जो चाहोगे, तुम्हारा शरीर तुम्हारी आज्ञा मानेगा। अभी तुम्हें शरीर की आज्ञा माननी पड़ती है,क्योंकि जहां से शरीर को आज्ञा दी जा सकती है, उस जगह पर तुम अभी भी खाली हो। वहा ऊर्जा नहीं है, जहां से आज्ञा दी जा सकती है। इसलिए उस चक्र का नाम आज्ञा—चक्र है।
ऐसे ही सब चक्रों के नाम हैं। वे नाम सार्थक हैं। और हर चक्र के साथ एक विशिष्ट अनुभव जुड़ा है।
आखिरी चक्र है #सहस्रार। सहस्रार का अर्थ होता है —सहस्र पंखुड़ियों वाला कमल। निश्चित ही जिस दि न श्र ही ऊर्जा पहुंचती है, वहा पूरा मस्तिष्क ऐसा मालूम होता है कि जैसे हजार पंखुडियों वाला कमल हो गया। —और वह कमल खिला है, आकाश की तरफ उन्मूख, सारी पंखुड़ियां खिल गयीं। और उससे जो अपूर्व भानंद का अनुभव, और जो अपूर्व सुगंध की वर्षा, और जीवन में जो पहली बार पूर्ण प्रकाश उतरता दे — ठीक ही कमल से उसको हमने चुना है। कई कारण हैं। उसको हमने सहस्रार कहा है, सहस्रदल कमल।
उपनिषद--कठोपनिषद--ओशो (ग्यारहवां--प्रवचन) बोध ही ऊर्ध्वगमन
#osho
#oshointernational #oshoquotes
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@highlight
Bhumi amla is also referred to as Bhui amla, Bhui avla in Marathi, as Kilanelli in Tamil, as Kizhukanelli in Malayalam and as Nela usiraka in Telugu. In English, Bhumi amla is termed gale of the wind, stonebreaker and seed-under-leaf.
भूमि आंवला एक आयुर्वेदिक दवई है। इसके फल बिल्कुल आंवले जैसे दिखते हैं और यह बहुत छोटा पौधा होता है इसलिए इसे भुई आंवला या भूमि आंवला कहते हैं। यह बरसात में अपने आप उग जाता है और छायादार नमी वाले स्थानों पर पूरे साल मिलता है। इसे उखाड़ कर व छाया में सुखा यूज किया जाता है। ये जड़ी- बूटी की दुकान पर भी आसानी से मिल जाता है।
पौधे को कैसे पहचाने
Bhui Amla इसका पौधा (bhumi amla tree) शाखाओं से युक्त, सीधा और भूमि पर फैलने वाला होता है। इसके पत्ते छोटे, चपटे होते हैं। इसके पत्ते आंवले के पत्तों के समान होतेत हैं, लेकिन आंवले के पत्तों की तुलना में ये छोटे एवं चमकीले होते हैं। इसके फल गोलाकार, धात्रीफल जैसे गोल एवं शाखाओं के नीचे एक कतार में निकले हुए होते हैं। Benefits: भुंई आंवला अपने गुणों की वजह से औषधि के तौर पर भी उपयोग किया जाता है. भुंई आंवला का सेवन कई बड़ी बीमारियों में काफी फायदेमंद होता है. पाचन दुरुस्त करने के साथ पेट केअल्सर तक में भुंई आंवला काफी लाभकारी होता है. आपने आंवला तो कई बार खाया होगा लेकिन अगर भुंई आंवला का प्रयोग अब तक नहीं किया है तो आज से ही इसे अपनी डाइट में शामिल कर सकते हैं. भुंई आंवला दिखने में आंवला जैसा ही होता है लेकिन यह एक छोटे झाड़ीदार पौधों पर उगता है. भुंई आंवला में एंटी-ऑक्सीडेंट प्रॉपर्टीज के साथ एंटीवायरल गुण भी होते हैं.
कैसे यूज करें-
आयुर्वेदिक एक्सपर्ट बताते हैं कि इसे तीन तरह से खाया जा सकता है।
> इसके चूर्ण को आधा चम्मच पानी के साथ दिन में 2-3 बार> पौधे का ताजा रस 10 से 20ML 2 से 3 बार> ताजा पौधे को उखाड़ कर और साफ धोकर भी खाया जा सकता है।
फायदे benefits
. यूरिनरी ट्रैक्ट स्टोन – किडनी में स्टोन या पथरी की समस्या बहुत से लोगों को होती है. पथरी होने के पीछे कई कारण हो सकते हैं. पथरी होने की स्थिति में भुंई आंवला का सेवन काफी लाभदायक हो सकता है. अपने गुणों की वजह से इसे ‘Stonebreaker’ भी कहा जाता है. इसमें किडनी स्टोन को ठीक करने की क्षमता होती है. इसके साथ ही भुंई आंवला में मौजूद प्रॉपर्टीज़ गॉलस्टोन को रोकने में मदद करने के साथ ही एसिडिक किडनी स्टोन को बनने से रोकती हैं.
2. हाई ब्लड शुगर – high blood pressure भुंई आंवला का इस्तेमाल डायबिटीज के मरीजों के लिए भी काफी लाभकारी हो सकता है. भुंई आंवला में मौजूद एंटी-ऑक्सीडेंट्स फास्टिंग ब्लड शुगर लेवल को इंप्रूव करने में मदद कर सकते हैं. भुंई आंवला के सेवन से मेटाबॉलिज्म भी बेहतर होने लगता है.
3. लिवर डिजीज – लिवर संबंधी बीमारियां काफी परेशानी खड़ी कर सकती हैं. भुंई आंवला में मौजूद प्रॉपर्टीज लिवर फंक्शन को बेहतर करती है. इसके साथ ही फ्री रेडिकल्स की वजह से लिवर को होने वाले डैमेज को भी भुंई आंवला का सेवन रोक सकता है. ऐसे में लिवर संबंधी बीमारियों से पीड़ित लोगों के लिए भुंई आंवला काफी लाभकारी हो सकता है.
4. पेट का अल्सर – पेट संबंधी समस्याओं में एक सबसे मुश्किल परिस्थिति पेट में अल्सर होना है. रिसर्च में पाया गया है कि भुंई आंवला अल्सर के लिए जिम्मेदार बैक्टिरिया को नष्ट कर देता है और इसके चलते इस बीमारी के होने का खतरा काफी कम हो जाता है.
5. ब्लड प्रेशर – ब्लड शुगर की तरह ही ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने में भी भुंई आंवला काफी कारगर साबित हो सकता है. हालांकि अगर आपकी सर्जरी की प्लानिंग है तो इसे दो हफ्ते पहले से ही बंद कर देना चाहिए क्योंकि इसमें मौजूद तत्व ब्लड क्लॉटिंग को धीमा कर देते हैं जिससे सर्जरी के दौरा न ब्लिडिंग का रिस्क बढ़ सकता है.
- लीवर बढ़ गया है या उसमे सूजन है तो यह उसके लिए बहुत असरदार दवाई है।- पीलिया में इसकी पत्तियों के पेस्ट को छाछ के साथ मिलाकर दिया जाता है इससे पीलिया बहुत जल्दी ठीक हो जाता है।- किडनी के इन्फेक्शन और किडनी फेलियर में यह बहुत लाभदायक है। यह किडनी के सिस्टम को ठीक करती है। यह डाइयूरेटिक है जिससे यूरिन ज्यादा बनती है जिससे बॉडी की सफाई होती है।
- एन्टीवायरल गुण होने के कारण यह हेपेटाइटिस B और C के लिए रामबाण दवाई है।- मुंह में छाले होने पर इसके पत्तों का रस चबाकर निगल लें या थूक दें। मुंह के छाले ठीक हो जाएंगे।- ब्रेस्ट में सूजन या गांठ हो तो इसके पत्तों का पेस्ट लगा लेने से आराम होगा।- सर्दी- खांसी में इसके साथ तुलसी के पत्ते मिलाकर काढ़ा बनाकर पीने से आराम मिलता है।- डायबिटीज में घाव न भरते हों तो इसका पेस्ट पीसकर लगा दें और इसे काली मिर्च के साथ लिया जाए तो शुगर कंट्रोल हो जाती है।
Dr Anoop Kumar Bajpai
Ayush yog and wellness clinic
Gurgaon India
yogawithanu@gmail.com
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Youtube
https://youtube.com/playlist?list=PL-w_KXScoPe3KOcsJwluV4TSlSv_z1ymU&si=GWHq9uqaK4Jfd-Gi
References
Wikkipedia
Only health
Dainik bhaskar
https://youtu.be/jn81PX_IxOU?si=Uta7F_kGzHo91L2J
यह एक प्रसिद्ध कहावत है जिसका अर्थ है कि हमारे विचार हमारे जीवन को आकार देते हैं। हम जैसा सोचते हैं, वैसा ही बन जाते हैं। इसका मतलब क्या है?
यह कहावत क्यों महत्वपूर्ण है?
हम अपने विचारों को कैसे नियंत्रित कर सकते हैं?
निष्कर्ष हमारे विचार हमारे जीवन को आकार देते हैं। इसलिए, हमें सकारात्मक विचारों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए कदम उठाने चाहिए। क्या आप इस विषय पर और जानना चाहते हैं?
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