Wednesday, December 18, 2024

समस्या बिना कारण नहीं आती, उनका आना आपके लिए इशारा है कि कुछ बदलाव

जीवन में समस्याएं आना आम है। लेकिन इनसे घबराने की बजाय, इनका सामना करने और अपनी ज़िंदगी को बेहतर बनाने के कई तरीके हैं।



यहाँ कुछ सुझाव दिए गए हैं:

 * सकारात्मक सोच: मुश्किल समय में भी सकारात्मक रहने की कोशिश करें। नकारात्मक विचारों को दूर भगाएं और अपने लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करें।

 * समस्या का समाधान ढूंढें: समस्या से भागने की बजाय, इसका समाधान ढूंढने की कोशिश करें। छोटे-छोटे कदम उठाकर शुरू करें और धीरे-धीरे आगे बढ़ें।

 * नई चीजें सीखें: नई चीजें सीखना आपको व्यस्त रखने के साथ-साथ आपके आत्मविश्वास को भी बढ़ाता है।

 * दूसरों से बात करें: अपने मन की बात किसी दोस्त, परिवार के सदस्य या किसी काउंसलर से शेयर करें। इससे आपको बेहतर महसूस होगा।

 * स्वयं पर ध्यान दें: अपनी सेहत का ख्याल रखें, नियमित रूप से व्यायाम करें और पर्याप्त नींद लें।

 * अपने लक्ष्यों को निर्धारित करें: अपने लिए कुछ लक्ष्य निर्धारित करें और उन्हें प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करें।

 * आभार व्यक्त करें: हर दिन उन चीजों के लिए आभार व्यक्त करें जिनके लिए आप धन्यवाद करते हैं।

याद रखें: जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। महत्वपूर्ण यह है कि आप इनसे कैसे निपटते हैं।

अगर आपको और अधिक मदद चाहिए तो आप किसी मनोवैज्ञानिक या काउंसलर से संपर्क कर सकते हैं।

क्या आप किसी विशिष्ट समस्या के बारे में बात करना चाहते हैं?

मुझे उम्मीद है कि यह जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी।

अन्य किसी प्रश्न के लिए आप मुझसे पूछ सकते हैं।

Anoop Kumar Bajpai

Tuesday, December 17, 2024

प्राण और अपान क्या होते है क्या ऊर्जा के स्त्रोत यही है

 उपनिषद--कठोपनिषद के सूत्र की व्याख्या

ऊर्ध्वं प्राणमन्नयत्यपानं प्रत्यगस्यति।

मध्ये वामनमासीनं विश्वे देवा उपासते।। 3।।

जो प्राण को ऊपर की ओर उठाता है और अपान को नीचे ढकेलता है शरीर के मध्य हृदय में बैठे हुए उस सर्वश्रेष्ठ भजने योग्य परमात्मा की सभी देवता उपासना करते हैं।




भारतीय #योग की एक गहरी खोज इस सूत्र में छिपी है।

पश्चिम का चिकित्साशास्त्र, मेडिकल साइंस अभी भी इस संबंध में करीब—करीब अपरिचित है। यह खोज है प्राण और अपान की।

भारतीय चिकित्साशास्त्र #आयुर्वेद, योग, #तंत्र, इन सबकी यह प्रतीति है कि शरीर में वायु की दो दिशाएं हैं। एक दिशा ऊपर की ओर है, उसका नाम प्राण। और एक दिशा नीचे की ओर है, उसका नाम अपान। 

शरीर में वायु का दोहरा रूप है और दो तरह की धाराएं हैं। जो मल—मूत्र विसर्जित होता है, वह अपान के कारण है। वह जो नीचे की तरफ वायु बह रही है, वही #मल—मूत्र को नीचे की तरफ अपनी धारा में ले जाती है। और जीवन में जितनी भी ऊपर की तरफ जाने वाली चीजें हैं, वे सब प्राण से जाती हैं।

इसलिए जो जितना ज्यादा #प्राणायाम को साध लेता है, उतना ऊपर उठने में कुशल हो जाता है। क्योंकि ऊपर जाने वाली धारा को विस्तार कर रहा है, फैला रहा है, बड़ा कर रहा है।

ये दो धाराएं हैं, दो करेंट हैं #वायु के, शरीर के भीतर। और इन दोनों के मध्य स्थित है परमात्मा, या आत्मा, या चेतना, या जो भी नाम आप देना चाहें। 

वह जो अंगुष्ठ आकार का #आत्मा है, वह इन दोनों धाराओं के बीच में उपस्थित है। वही वायु को नीचे की तरफ धकाता है, वही वायु को ऊपर की तरफ धकाता है। 

#प्राण—ऊपर की तरफ जाने वाली वायु। 

#अपान—नीचे की तरफ जाने वाली वायु।

पश्चिम का चिकित्साशास्त्र अभी भी इस दोहरी धारा को नहीं पहचान पाया है। उनका खयाल है, वायु एक ही तरह की है। इसलिए वायु के आधार पर जो बहुत—से काम आयुर्वेद कर सकता है, वह ऐलोपैथी नहीं कर सकती। वायु की इन धाराओं को ठीक से समझ लेने वाला व्यक्ति जीवन में बड़ी क्रातिया कर सकता है।

छोटा बच्चा #श्वास लेता है, तो आपने देखा है कि जब छोटा बच्चा श्वास लेता है तो उसका पेट ऊपर—नीचे जाता है। बच्चा लेटा है, श्वास लेता है, तो पेट ऊपर जाता है, नीचे जाता है। छाती पर कोई हलन—चलन भी नहीं होती। उसकी श्वास बड़ी गहरी है। आप जब श्वास लेते हैं तो सीना ऊपर उठता है, नीचे गिरता है। आपकी श्वास उथली है,गहरी नहीं है।

मनसविद बड़े हैरान हैं कि यह घटना क्यों घटती है? उम्र बढ़ने के साथ श्वास उथली क्यों हो जाती है? और बच्चे की श्वास गहरी क्यों होती है? जानवरों की श्वास भी गहरी होती है। जंगली आदमियों की श्वास भी गहरी होती है। जितना सभ्य आदमी हो, उतनी उथली श्वम्म हो जाती है।

 बड़ी मुश्किल की बात है कि सभ्यता से श्वास का ऐसा क्या संबंध होगा? और वह कौन—सी घड़ी है जब से बच्चा गहरी श्वास लेना बंद कर देता है?

योग इस राज को जानता है। और यह राज अब मनोविज्ञान को भी थोड़ा— थोड़ा साफ होने लगा है। क्योंकि मनोवैशानिक कहते हैं कि बच्चे को जिस दिन से काम का भय पैदा हो जाता है, वासना का भय मां —बाप जिस दिन से उसे सचेत कर देते हैं सेक्स के प्रति, उसी दिन से उसकी श्वास उथली हो जाती है। क्योंकि श्वास जब गहरी जाती है, तो कामकेंद्र पर चोट करती है। वह अपान बन जाती है। और कामवासना को जगाती है।

जितनी गहरी श्वास होगी, उतनी कामवासना सतेज होगी। बच्चे भयभीत कर दिए जाते हैं कि काम बुरा है,सेक्स पाप है। वे घबरा जाते हैं। तो अपनी श्वास को ऊपर सम्हालने लगते हैं, वे उसको गहरा नहीं जाने देते। फिर धीरे— धीरे उनकी श्वास सिर्फ ऊपर—ऊपर चलने लगती है। उनके कामकेंद्र और स्वयं के बीच एक फासला हो जाता है। 

ऐसे व्यक्तियों के जीवन में कामवासना विकृत हो जाती है। वे संभोग का किसी तरह का भी सुख नहीं ले पाते, क्योंकि संभोग के लिए बड़ी गहरी श्वास जरूरी है।

और जब गहरी श्वास हो, तो पूरा शरीर आदोलित होता है। और शरीर के पूरे आदोलन में, शरीर के पूरी तरह समाविष्ट हो जाने में इस प्रक्रिया में, पूरी तरह डूब जाने से, थोड़ा—बहुत सुख का आभास मिलता है। लेकिन वह आभास भी असंभव हो जाता है, क्योंकि श्वास इतनी गहरी नहीं जाती। और न—मालूम कितनी बीमारियां इसके साथ पैदा होती हैं, क्योंकि आपका अपान कमजोर हो जाता है।

जो लोग भी उथली श्वास लेते हैं, उनको कब्जियत हो जाएगी। क्योंकि अपान, जो वायु नीचे जाकर मल को विसर्जित करती है, वह वायु नीचे नहीं जा रही है। लेकिन डर वही है। क्योंकि वीर्य भी मल है उसको भी निष्कासित करने के लिए वायु को नीचे तक जाना चाहिए। अपान बनना चाहिए। तो जो व्यक्ति भी डरेगा सेक्स से, उसको कब्जियत भी पकड़ लेगी। क्योंकि वह एक ही वायु दोनों को धक्का देती है। 

ब्रह्मचर्य का प्रयोग अपान को रोकने से नहीं होता। ब्रह्मचर्य का प्रयोग प्राण को बढ़ाने से होता है। इस फर्क को ठीक से समझ लें। हम सारे लोगों ने ब्रह्मचर्य के नाम पर गलत कर लिया है और अपान को रोक लिया है। उसकी वजह से हम सिर्फ रुग्ण और बीमार हो गए हैं। हमारे व्यक्तित्व की जो गरिमा और जो स्वास्थ्य हो सकता था, वह नष्ट हो गया है। और शरीर न—मालूम कितने जहर से भर जाता है। क्योंकि जो अपान सारे जहरों को शरीर के बाहर फेंकती है, वह नहीं फेंक पाती। आप डरे हुए हैं। ब्रह्मचर्य की यह निषेधात्मक प्रक्रिया है—निगेटिव।

एक विधायक प्रक्रिया है—अपान को मत छेड़े, प्राण को बढ़ाए। प्राण इतना ज्यादा हो जाए कि अपान उसके मुकाबले बिलकुल छोटा हो जाए। एक बड़ी लकीर खींच दें। तो अपान शुद्ध रहे और प्राण विराट हो जाए, तो आपकी ऊर्जा ऊपर की तरफ बहने लगे।

इसलिए प्राणायाम का इतना उपयोग है योग में, क्योंकि प्राणायाम धक्के देता है ऊपर की तरफ ऊर्जा को। जो काम—ऊर्जा अपान के द्वारा सेक्स बनती है, वही काम—ऊर्जा प्राण के द्वारा कुंडलिनी बन जाती है। वह ऊपर की तरफ बहने लगती है। और ऊपर की तरफ बहते—बहते मस्तिष्क में जाकर उसका कमल खिल जाता है।

अपान के धक्के से वही कामवासना किसी बच्चे का जन्म बनती है, प्राण के धक्के से वही कामवासना आपका स्वयं का नया जन्म बन जाती है—लेकिन मस्तिष्क तक आ जाए तब। तो प्राण उसे ऊपर की तरफ लाता है।

यह सूत्र कह रहा है कि प्राण और अपान दोनों के बीच में छिपा है वह परमात्मा, जिसके संबंध में तुमने पूछा था। वही नीचे की तरफ अपान को ले जाता है, वही प्रकृति का आधार है। और वही प्राण को ऊपर की तरफ ले जाता है, वही परलोक का आधार है। यह तेरे ऊपर निर्भर है कि तू किस धारा में प्रविष्ट होना चाहता है। अगर तू नीचे की धारा में प्रविष्ट होना चाहता है, तो तुझे अपान को बढ़ाना होगा।

सभी पशुओं का अपान बड़ा प्रबल होता है, उनका प्राण बहुत निर्बल होता है। सिर्फ योगियों का प्राण सबल होता है। अपान स्वस्थ होता है और प्राण इतना सबल होता है कि अपान, स्वस्थ अपान भी उस पर कब्जा नहीं कर पाता;कब्जा प्राण का ही होता है। साधारण आदमी का प्राण तो कमजोर होता ही है, वह अपान भी कमजोर कर लेता है, डर और भय के कारण।

भयभीत आदमी गहरी श्वास नहीं लेता। सिर्फ निर्भय आदमी गहरी श्वास लेता है। किसी भी कारण से डरा हुआ आदमी गहरी श्वास नहीं लेता। कोई आदमी आपकी छाती पर छुरा लाकर रख दे, श्वास रुक जाएगी। जब भी आप भयभीत होंगे, श्वास रुक जाएगी। जहा भी आप घबड़ा जाते हैं, किसी से मिलने गए हैं, किसी बड़े आफिसर से और घबड़ा गए हैं, बस श्वास उथली हो जाती है, ऊपर—ऊपर चलने लगती है। फिर आप बाहर आकर ही ठीक से श्वास ले पाते हैं।

हम इतना डरा दिए हैं एक—दूसरे को कि हमारा सब श्वास का पूरा यंत्र—जाल अस्वस्थ हो गया है। दोनों के बीच में छिपा है परमात्मा, दोनों का मालिक वही है।

अपान से डरने की कोई भी जरूरत नहीं, क्योंकि शरीर का सारा स्वास्थ्य उस पर निर्भर है। निष्कासन उसका काम है। और अगर निष्कासन ठीक न हो, तो शरीर में जहर टाक्सिन्स इकट्ठे हो जाएंगे। और वे इकट्ठे हो गए हैं। हर आदमी के खून में जहर चल रहा है।

व्यायाम कोई आदमी करे, दौड़े, चले, तैरे, तो अपान सबल हो जाता है। इसलिए शरीर में एक ताजगी और स्वास्थ्य आ जाता है। लेकिन कोई गहरी श्वास लें—प्राणायाम सिर्फ गहरी श्वास नहीं है, प्राणायाम बोधपूर्वक गहरी श्वास है। इस फर्क को ठीक से समझ लें। बहुत से लोग प्राणायाम भी करते हैं, तो बोधपूर्वक नहीं, बस गहरी श्वास लेते रहते हैं।

अगर गहरी श्वास ही आप सिर्फ लेंगे, तो अपान स्वस्थ हो जाएगा। बुरा नहीं है, अच्छा है। लेकिन ऊर्ध्वगति नहीं होगी। ऊर्ध्वगति तो तब होगी जब श्वास की गहराई के साथ आपकी अवेयरनेस, आपकी जागरूकता भीतर जुड़ जाए।

बुद्ध ने कहा है, श्वास चले, नाक को छुए, तब तुम जानो कि नाक छू रही है। भीतर चले, नासापुटों में स्पर्श हो, जानो कि नासापुटों में स्पर्श हो रहा है। कंठ में उतरे, जानो कि कंठ में स्पर्श हो रहा है। फेफड़ों में आए, नीचे जाए,पेट तक पहुंचे, तुम देखते चले जाओ, उसके पीछे—पीछे ही तुम्हारी स्मृति लगी रहे। फिर एक क्षण को रुक जाएगी—गैप। वह गैप बड़ा कीमती है।

जब आप श्वास गहरी लेंगे, एक क्षण को जब भीतर पहुंच जाएंगे, एक क्षण को कोई श्वास नहीं होगी,। बाहर न भीतर। सब ठहर जाएगा। फिर श्वास बाहर लौटेगी। एक सेकेंड विश्राम करके फिर बाहर तरफ चलेगी, तब तुम भी उसके साथ बाहर चलो। उठो, उसी के साथ। आओ कंठ तक, आओ नाक तक। बाहर निकल जाए, उसका पीछा करते रहो। फिर बाहर जाकर एक सेकेंड को सब ठहर जाएगा। फिर नई श्वास शुरू होगी। फिर भीतर, फिर बाहर।

बुद्ध ने कहा है, तुम इसको माला बना लो और तुम इसी के गुरियों के साथ अपने स्मरण को जगाते रहो। अगर गहरी श्वास के साथ बोध हो, तो प्राण का विस्तार होता है, और जीवन—ऊर्जा की गति ऊपर की तरफ होनी शुरू हो जाती है।

बोध ऊपर का सूत्र है, मूर्च्छा नीचे का सूत्र है।

अगर कोई व्यक्ति निरंतर, जब भी उसे स्मरण आ जाए, सिर्फ श्वास पर बोध को साधता रहे, तो किसी और साधना की जरूरत नहीं। उतना काफी है। पर वह बड़ा कठिन है। चौबीस घंटे, जब भी खयाल आ जाए, तो श्वास को?.। किसी को पता भी नहीं चलेगा, चुपचाप यह हो सकता है। किसी को खबर भी नहीं होगी कि आप क्या कर रहे हैं। किसी को भी पता नहीं चलेगा।

#जीसस ने कहा है कि तुम्हारा बायां हाथ जब कुछ करे, तो दाएं हाथ को पता न चले।

यह इस तरह की प्रक्रिया है, जिसमें किसी को भी पता नहीं चलेगा। तुम चुपचाप अपनी श्वास के साथ धीरे—धीरे स्मृति से भरते चले जाओगे। और जैसे—जैसे स्मृति गहन होगी, श्वास गहरी होगी, वैसे—वैसे उसकी चोट स्मरणपूर्वक तुम्हारी ऊर्जा को रीढ़ के मार्ग से ऊपर की तरफ उठाने लगेगी। और यह कोई कल्पना की बात नहीं है, तुम अपनी रीढ़ में निश्चित रूप से विद्युत की धारा को उठता हुआ पाओगे। तरंगें तुम्हारी रीढ़ में दौड़ने लगेंगी। 

वे तरंगें उत्तप्त होंगी। और तुम चाहो तो तुम अपने हाथ से छूकर देख भी सकते हो, जहा तरंगें होंगी वहां रीढ़ गरम हो जाएगी। और जैसे—जैसे यह गर्म ऊर्जा ऊपर की तरफ उठेगी, तुम्हारी रीढ़ उत्तप्त होने लगेगी। तुम अनुभव करोगे कि कहा तक जाती है यह ऊर्जा। फिर गिर जाती है, फिर जाती है।

निरंतर अभ्यास से एक दिन यह #ऊर्जा तुम्हारे ठीक #सहस्रार तक पहुंच जाती है। लेकिन इस बीच यह और #चक्रों से गुजरती है और हर चक्र के अपने अनुभव हैं। हर चक्र पर तुम्हारे जीवन में नया प्रकाश, और हर चक्र से जब यह ऊर्जा गुजरेगी तो तुम्हारे जीवन में नई #सुगंध, नए अर्थ, नए अभिप्राय प्रगट होने लगेंगे। नए फूल खिलने लगेंगे।

योगशास्त्र ने पूरी तरह निश्चित किया है—हजारों —लाखों प्रयोग करने के बाद—कि हर केंद्र पर क्या घटता है। एक—दो उदाहरण, ताकि खयाल में आ जाए। और उसी हिसाब से इन #केंद्रों के, चक्रों के नाम रखे हैं।

जैसे दोनों आंखों के बीच में जो चक्र है, उसको योग ने #आज्ञा—चक्र कहा है। उसको आज्ञा—चक्र इसलिए कहा है कि जिस दिन तुम्हारी ऊर्जा उस चक्र से गुजरेगी, तुम्हारा #शरीर, तुम्हारी #इंद्रियां तुम्हारी #आज्ञा मानने लगेंगी। तुम जो कहोगे, उसी #क्षण होगा। तुम्हारा #व्यक्तित्व तुम्हारे हाथ में आ जाएगा, तुम #मालिक हो जाओगे।

इस चक्र के पहले तुम गुलाम हो। इस चक्र में जिस दिन ऊर्जा प्रवेश करेगी, उस दिन से तुम्हारी मालकियत हो जाएगी। उस दिन से तुम जो चाहोगे, तुम्हारा शरीर तुम्हारी आज्ञा मानेगा। अभी तुम्हें शरीर की आज्ञा माननी पड़ती है,क्योंकि जहां से शरीर को आज्ञा दी जा सकती है, उस जगह पर तुम अभी भी खाली हो। वहा ऊर्जा नहीं है, जहां से आज्ञा दी जा सकती है। इसलिए उस चक्र का नाम आज्ञा—चक्र है।

ऐसे ही सब चक्रों के नाम हैं। वे नाम सार्थक हैं। और हर चक्र के साथ एक विशिष्ट अनुभव जुड़ा है। 

आखिरी चक्र है #सहस्रार। सहस्रार का अर्थ होता है —सहस्र पंखुड़ियों वाला कमल। निश्चित ही जिस दि न श्र ही ऊर्जा पहुंचती है, वहा पूरा मस्तिष्क ऐसा मालूम होता है कि जैसे हजार पंखुडियों वाला कमल हो गया। —और वह कमल खिला है, आकाश की तरफ उन्मूख, सारी पंखुड़ियां खिल गयीं। और उससे जो अपूर्व भानंद का अनुभव, और जो अपूर्व सुगंध की वर्षा, और जीवन में जो पहली बार पूर्ण प्रकाश उतरता दे — ठीक ही कमल से उसको हमने चुना है। कई कारण हैं। उसको हमने सहस्रार कहा है, सहस्रदल कमल।

उपनिषद--कठोपनिषद--ओशो (ग्‍यारहवां--प्रवचन) बोध ही ऊर्ध्‍वगमन

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Bhui Amla Health Benefits: भुंई आंवला Bhumi Amla (Phyllanthus niruri) is also known as ‘Dukong anak’ and as ‘Bhumi Amalaki’ in sanskrit.

 



Bhumi amla is also referred to as Bhui amla, Bhui avla in Marathi, as Kilanelli in Tamil, as Kizhukanelli in Malayalam and as Nela usiraka in Telugu. In English, Bhumi amla is termed gale of the wind, stonebreaker and seed-under-leaf.

भूमि आंवला एक आयुर्वेदिक दवई है। इसके फल बिल्कुल आंवले जैसे दिखते हैं और यह बहुत छोटा पौधा होता है इसलिए इसे भुई आंवला या भूमि आंवला कहते हैं। यह बरसात में अपने आप उग जाता है और छायादार नमी वाले स्थानों पर पूरे साल मिलता है। इसे उखाड़ कर व छाया में सुखा यूज किया जाता है। ये जड़ी- बूटी की दुकान पर भी आसानी से मिल जाता है।

पौधे को कैसे पहचाने

Bhui Amla इसका पौधा (bhumi amla tree) शाखाओं से युक्त, सीधा और भूमि पर फैलने वाला होता है। इसके पत्ते छोटे, चपटे होते हैं। इसके पत्ते आंवले के पत्तों के समान होतेत हैं, लेकिन आंवले के पत्तों की तुलना में ये छोटे एवं चमकीले होते हैं। इसके फल गोलाकार, धात्रीफल जैसे गोल एवं शाखाओं के नीचे एक कतार में निकले हुए होते हैं। Benefits: भुंई आंवला अपने गुणों की वजह से औषधि के तौर पर भी उपयोग किया जाता है. भुंई आंवला का सेवन कई बड़ी बीमारियों में काफी फायदेमंद होता है. पाचन दुरुस्त करने के साथ पेट केअल्सर तक में भुंई आंवला काफी लाभकारी होता है. आपने आंवला तो कई बार खाया होगा लेकिन अगर भुंई आंवला का प्रयोग अब तक नहीं किया है तो आज से ही इसे अपनी डाइट में शामिल कर सकते हैं. भुंई आंवला दिखने में आंवला जैसा ही होता है लेकिन यह एक छोटे झाड़ीदार पौधों पर उगता है. भुंई आंवला में एंटी-ऑक्सीडेंट प्रॉपर्टीज के साथ एंटीवायरल गुण भी होते हैं.

कैसे यूज करें-

आयुर्वेदिक एक्सपर्ट बताते हैं कि इसे तीन तरह से खाया जा सकता है।

> इसके चूर्ण को आधा चम्मच पानी के साथ दिन में 2-3 बार> पौधे का ताजा रस 10 से 20ML 2 से 3 बार> ताजा पौधे को उखाड़ कर और साफ धोकर भी खाया जा सकता है।

फायदे benefits

. यूरिनरी ट्रैक्ट स्टोन – किडनी में स्टोन या पथरी की समस्या बहुत से लोगों को होती है. पथरी होने के पीछे कई कारण हो सकते हैं. पथरी होने की स्थिति में भुंई आंवला का सेवन काफी लाभदायक हो सकता है. अपने गुणों की वजह से इसे ‘Stonebreaker’ भी कहा जाता है. इसमें किडनी स्टोन को ठीक करने की क्षमता होती है. इसके साथ ही भुंई आंवला में मौजूद प्रॉपर्टीज़ गॉलस्टोन को रोकने में मदद करने के साथ ही एसिडिक किडनी स्टोन को बनने से रोकती हैं.

2. हाई ब्लड शुगर – high blood pressure भुंई आंवला का इस्तेमाल डायबिटीज के मरीजों के लिए भी काफी लाभकारी हो सकता है. भुंई आंवला में मौजूद एंटी-ऑक्सीडेंट्स फास्टिंग ब्लड शुगर लेवल को इंप्रूव करने में मदद कर सकते हैं. भुंई आंवला के सेवन से मेटाबॉलिज्म भी बेहतर होने लगता है.

3. लिवर डिजीज – लिवर संबंधी बीमारियां काफी परेशानी खड़ी कर सकती हैं. भुंई आंवला में मौजूद प्रॉपर्टीज लिवर फंक्शन को बेहतर करती है. इसके साथ ही फ्री रेडिकल्स की वजह से लिवर को होने वाले डैमेज को भी भुंई आंवला का सेवन रोक सकता है. ऐसे में लिवर संबंधी बीमारियों से पीड़ित लोगों के लिए भुंई आंवला काफी लाभकारी हो सकता है.

4. पेट का अल्सर – पेट संबंधी समस्याओं में एक सबसे मुश्किल परिस्थिति पेट में अल्सर होना है. रिसर्च में पाया गया है कि भुंई आंवला अल्सर के लिए जिम्मेदार बैक्टिरिया को नष्ट कर देता है और इसके चलते इस बीमारी के होने का खतरा काफी कम हो जाता है.

5. ब्लड प्रेशर – ब्लड शुगर की तरह ही ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने में भी भुंई आंवला काफी कारगर साबित हो सकता है. हालांकि अगर आपकी सर्जरी की प्लानिंग है तो इसे दो हफ्ते पहले से ही बंद कर देना चाहिए क्योंकि इसमें मौजूद तत्व ब्लड क्लॉटिंग को धीमा कर देते हैं जिससे सर्जरी के दौरा न ब्लिडिंग का रिस्क बढ़ सकता है.

- लीवर बढ़ गया है या उसमे सूजन है तो यह उसके लिए बहुत असरदार दवाई है।- पीलिया में इसकी पत्तियों के पेस्ट को छाछ के साथ मिलाकर दिया जाता है इससे पीलिया बहुत जल्दी ठीक हो जाता है।- किडनी के इन्फेक्शन और किडनी फेलियर में यह बहुत लाभदायक है। यह किडनी के सिस्टम को ठीक करती है। यह डाइयूरेटिक है जिससे यूरिन ज्यादा बनती है जिससे बॉडी की सफाई होती है।

- एन्टीवायरल गुण होने के कारण यह हेपेटाइटिस B और C के लिए रामबाण दवाई है।- मुंह में छाले होने पर इसके पत्तों का रस चबाकर निगल लें या थूक दें। मुंह के छाले ठीक हो जाएंगे।- ब्रेस्ट में सूजन या गांठ हो तो इसके पत्तों का पेस्ट लगा लेने से आराम होगा।- सर्दी- खांसी में इसके साथ तुलसी के पत्ते मिलाकर काढ़ा बनाकर पीने से आराम मिलता है।- डायबिटीज में घाव न भरते हों तो इसका पेस्ट पीसकर लगा दें और इसे काली मिर्च के साथ लिया जाए तो शुगर कंट्रोल हो जाती है।

Dr Anoop Kumar Bajpai

Ayush yog and wellness clinic

Gurgaon India

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References

Wikkipedia

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Thursday, October 24, 2024

Positive thinking यानि जैसा आप सोचते है वैसे बनते जाते है।

https://youtu.be/jn81PX_IxOU?si=Uta7F_kGzHo91L2J 

यह एक प्रसिद्ध कहावत है जिसका अर्थ है कि हमारे विचार हमारे जीवन को आकार देते हैं। हम जैसा सोचते हैं, वैसा ही बन जाते हैं। इसका मतलब क्या है?

  • सकारात्मक विचार: सकारात्मक विचार सकारात्मक परिणाम लाते हैं। अगर हम सफल होने के बारे में सोचते हैं, तो हम सफल होने की अधिक संभावना रखते हैं।

  • नकारात्मक विचार: नकारात्मक विचार नकारात्मक परिणाम लाते हैं। अगर हम असफल होने के बारे में सोचते हैं, तो हम असफल होने की अधिक संभावना रखते हैं।

  • स्वयं को सशक्त बनाना: अपने विचारों को नियंत्रित करके हम खुद को सशक्त बना सकते हैं और अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं।

यह कहावत क्यों महत्वपूर्ण है?

  • आत्मविश्वास बढ़ाना: यह हमें आत्मविश्वास बढ़ाने और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रेरित करती है।

  • नकारात्मकता से लड़ना: यह हमें नकारात्मकता से लड़ने और सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने में मदद करती है।

  • जीवन को बेहतर बनाना: यह हमें अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए प्रेरित करती है।

हम अपने विचारों को कैसे नियंत्रित कर सकते हैं?

  • ध्यान: ध्यान करने से हम अपने विचारों को शांत कर सकते हैं और सकारात्मक विचारों पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।
  • आत्म-चिंतन: अपने विचारों और भावनाओं का विश्लेषण करने से हम उन्हें बेहतर ढंग से समझ सकते हैं और उन्हें बदल सकते हैं।
  • सकारात्मक पुस्तकें पढ़ना: सकारात्मक पुस्तकें पढ़ने से हमें सकारात्मक विचार प्राप्त होते हैं।
  • सकारात्मक लोगों के साथ रहना: सकारात्मक लोगों के साथ रहने से हम भी सकारात्मक बन सकते हैं।

निष्कर्ष हमारे विचार हमारे जीवन को आकार देते हैं। इसलिए, हमें सकारात्मक विचारों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए कदम उठाने चाहिए। क्या आप इस विषय पर और जानना चाहते हैं?

  • आप अपने विचारों को कैसे नियंत्रित करते हैं?
  • आपके अनुसार इस कहावत का सबसे महत्वपूर्ण पहलू क्या है?
  • क्या आप कोई ऐसा अनुभव साझा करना चाहेंगे जिसमें आपके विचारों ने आपके जीवन को प्रभावित किया हो?

https://youtu.be/BTgmLrVbhQg?si=Ht4iq0_BiaybeCO8 

Thursday, August 29, 2024

लोगों को खुश रखना एक कला है



 लोगों को खुश रखना एक कला है, एक विज्ञान नहीं। हर व्यक्ति अलग होता है, इसलिए एक ही तरीका सभी के लिए कारगर नहीं होगा। फिर भी, कुछ सामान्य बातें हैं जो आप लोगों को खुश रखने के लिए कर सकते हैं:

 * सुनें: सबसे महत्वपूर्ण बात है कि लोगों को ध्यान से सुनें। जब आप किसी की बात ध्यान से सुनते हैं, तो वे समझते हैं कि आप उनकी परवाह करते हैं।

 * सहानुभूति दिखाएं: दूसरों की भावनाओं को समझने की कोशिश करें और उन्हें बताएं कि आप उनकी भावनाओं को समझते हैं।

 * प्रशंसा करें: लोगों की अच्छी बातों की प्रशंसा करें। एक छोटी सी प्रशंसा भी किसी का दिन बना सकती है।

 * मदद करें: जब किसी को मदद की जरूरत हो, तो बिना किसी शर्त के मदद करें।

 * हंसें: हंसी एक संक्रामक भावना है। हंसना लोगों को तनावमुक्त महसूस कराता है और उनके साथ घनिष्ठ संबंध बनाने में मदद करता है।

 * सकारात्मक रहें: नकारात्मकता से बचें और सकारात्मक दृष्टिकोण रखें। सकारात्मक लोग दूसरों को भी सकारात्मक महसूस कराते हैं।

 * समय दें: लोगों को समय दें। व्यस्त जीवन शैली में, लोगों को समय देना बहुत महत्वपूर्ण है।

 * क्षमा करें: अगर आपसे कोई गलती हो जाए तो माफी मांगें और क्षमा करने की कोशिश करें।

 * दूसरों की मदद करें: दूसरों की मदद करने से आपको अच्छा महसूस होगा और यह दूसरों को भी खुश करेगा।

 * स्वयं पर ध्यान दें: खुद को खुश रखना भी जरूरी है। जब आप खुश होंगे, तो आप दूसरों को भी खुश रख पाएंगे।

कुछ अतिरिक्त सुझाव:

 * व्यक्तिगत स्पर्श जोड़ें: एक छोटा सा उपहार, एक हाथ मिलाना या एक गर्मजोशी भरा आलिंगन किसी का दिन बना सकता है।

 * हास्य की भावना विकसित करें: हास्य एक शक्तिशाली उपकरण है जो लोगों को जोड़ने और तनाव कम करने में मदद करता है।

 * रचनात्मक बनें: लोगों को खुश रखने के लिए रचनात्मक तरीके खोजें।

 * धैर्य रखें: लोगों को खुश रखने में समय लग सकता है। धैर्य रखें और लगातार प्रयास करते रहें।

याद रखें:

 * हर व्यक्ति अलग होता है, इसलिए लोगों को खुश रखने के लिए अलग-अलग तरीकों की आवश्यकता होती है।

 * सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आप ईमानदार और सच्चे रहें।

 * दूसरों की भावनाओं को समझने की कोशिश करें।

 * सकारात्मक रहें और दूसरों को भी सकारात्मक महसूस कराएं।

अंत में, लोगों को खुश रखना एक सतत प्रक्रिया है। इसमें लगातार प्रयास करने की आवश्यकता होती है।

क्या आप लोगों को खुश रखने के बारे में और अधिक जानना चाहते हैं?


योग और आध्यात्मिकता: एक गहरा संबंध

 योग और आध्यात्मिकता: एक गहरा संबंध


योग सिर्फ एक व्यायाम नहीं है, बल्कि एक प्राचीन भारतीय दर्शन है जो शरीर, मन और आत्मा को एकजुट करने का मार्ग दिखाता है। यह आध्यात्मिक विकास की एक यात्रा है, जिसमें हम अपने भीतर की शक्ति और ज्ञान को खोजते हैं।

योग और आध्यात्मिकता के बीच गहरा संबंध है।

 * आत्म-अनुशासन: योग हमें आत्म-अनुशासन सिखाता है, जो आध्यात्मिक विकास के लिए आवश्यक है।

 * ध्यान: योग में ध्यान एक महत्वपूर्ण अंग है जो हमें अपने भीतर की ओर ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है।

 * अंतर्मुखी होना: योग हमें अपनी भावनाओं और विचारों को समझने में मदद करता है और हमें अधिक अंतर्मुखी बनाता है।

 * सर्वव्यापकता: योग हमें यह समझने में मदद करता है कि हम सभी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और पूरे ब्रह्मांड से जुड़े हुए हैं।

 * मोक्ष: योग का अंतिम लक्ष्य मोक्ष या मुक्ति है, जो आध्यात्मिक मुक्ति की अवस्था है।

योग के माध्यम से आध्यात्मिक विकास के कुछ तरीके:

 * आसन: आसन हमें शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बनाते हैं और हमें ध्यान के लिए तैयार करते हैं।

 * प्राणायाम: प्राणायाम हमें अपनी श्वास को नियंत्रित करने में मदद करते हैं और हमारे मन को शांत करते हैं।

 * ध्यान: ध्यान हमें अपने भीतर की ओर ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है और हमें आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाता है।

 * मंत्र जाप: मंत्र जाप हमें एकाग्रता और ध्यान में मदद करता है।

योग और आध्यात्मिकता के लाभ:

 * तनाव कम करना: योग तनाव और चिंता को कम करने में मदद करता है।

 * मानसिक स्वास्थ्य में सुधार: योग मानसिक स्वास्थ्य में सुधार करता है और हमें अधिक खुश और संतुष्ट महसूस कराता है।

 * शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार: योग शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार करता है और हमें बीमारियों से बचाता है।

 * आत्म-ज्ञान: योग हमें अपने बारे में अधिक जानने में मदद करता है और हमें आत्म-ज्ञान प्राप्त करने में मदद करता है।

निष्कर्ष:

योग और आध्यात्मिकता एक दूसरे से अविभाज्य हैं। योग हमें आध्यात्मिक विकास के मार्ग पर चलने में मदद करता है। यदि आप आध्यात्मिक रूप से विकसित होना चाहते हैं, तो योग एक शानदार उपकरण है।

क्या आप योग और आध्यात्मिकता के बारे में और जानना चाहते हैं?

यहां कुछ विशिष्ट विषयों पर चर्चा की जा सकती है:

 * विभिन्न योग शैलियाँ और उनके आध्यात्मिक महत्व

 * योग और अन्य धर्मों के बीच संबंध

 * योग और आधुनिक जीवन शैली

 * योग शिक्षक कैसे चुनें

मुझे बताएं कि आप किस विषय पर अधिक जानना चाहते हैं।

Dr Anoop Kumar Bajpai

8882916065

आंवला खाने के फायदे

 आंवला खाने के फायदे



आंवला सेहत के लिए बेहद फायदेमंद है। इसमें विटामिन सी, एंटीऑक्सीडेंट्स और कई अन्य पोषक तत्व होते हैं जो शरीर को कई तरह से फायदा पहुंचाते हैं।

आंवला खाने के कुछ प्रमुख फायदे इस प्रकार हैं:

 * इम्यूनिटी बढ़ाता है: आंवला में विटामिन सी भरपूर मात्रा में होता है जो इम्यूनिटी को मजबूत बनाने में मदद करता है।

 * पाचन दुरुस्त करता है: आंवला में फाइबर होता है जो पाचन को दुरुस्त रखता है। यह कब्ज और एसिडिटी जैसी समस्याओं से राहत दिलाता है।

 * त्वचा के लिए फायदेमंद: आंवला में एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं जो त्वचा को स्वस्थ रखते हैं और झुर्रियों को कम करने में मदद करते हैं।

 * बालों के लिए फायदेमंद: आंवला बालों को मजबूत बनाता है और बालों का झड़ना कम करता है।

 * डायबिटीज में फायदेमंद: आंवला ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित करने में मदद करता है।

 * दिल के लिए फायदेमंद: आंवला दिल को स्वस्थ रखने में मदद करता है।

आंवला का सेवन करने के तरीके:

 * आंवले का जूस: आप आंवले का जूस पी सकते हैं।

 * आंवला का मुरब्बा: आप आंवले का मुरब्बा खा सकते हैं।

 * आंवला चूर्ण: आप आंवले का चूर्ण पानी में मिलाकर पी सकते हैं।

ध्यान दें:

 * आंवला खाने से पहले किसी डॉक्टर की सलाह लेना जरूरी है।

 * अगर आपको कोई एलर्जी है तो आंवला का सेवन करने से पहले सावधान रहें।

अधिक जानकारी के लिए आप डॉक्टर या आयुर्वेदिक विशेषज्ञ से संपर्क कर सकते हैं।

क्या आप आंवला के बारे में और कुछ जानना चाहते हैं?


Tuesday, June 18, 2024

Hind ke Sirara sohar in Panchayat web series 3 Lyrics अरे अइसन मनोहर मंगल मूरत…..सुहावन सुन्दर सूरत… हो

 


अरे अइसन मनोहर मंगल मूरत…..सुहावन सुन्दर सूरत… हो

 


 ये राजाजी3 ये करे ता रहलबा जरूरत मुहूरत खूबसूरत हो

 ये राजाजी ये करे ता रहलबा जरूरत मुहूरत खूबसूरत हो

 ये राजाजी ये करे ता रहलबा जरूरत मुहूरत खूबसूरत हो

 

1. अरे हमारा जनाता बबुआ जी एम होईहैं, ना ना ललना डी एम होईहैं हो,

     ये ललना 3 हिंद के सितारा ता सी एम होईहैं, ओसे उपरा पीएम होईहैं हो

     ये ललना हिंद के सितारा ता सी एम होईहैं, ओसे उपरा पीएम होईहैं हो

    ये ललना हिंद के सितारा ता सी एम होईहैं, ओसे उपरा पीएम होईहैं हो


  2. होईहैं वाईस चांसलर यूनिवर्सिटी, के मेयर लंदन सिटी केनु हो,

     ये ललना3 होम सेकेट्री गौरमेंट्री के ता हीरा अपना मिट्टी केनु हो

     ये ललना होम सेकेट्री गौरमेंट्री के ता हीरा अपना मिट्टी केनु हो

     ये ललना होम सेकेट्री गौरमेंट्री के ता हीरा अपना मिट्टी केनु हो

 

3. अरे बबुआ हमार महाराज होईहैं राजाधिराज होईहैं हो

   ये ललना3 धातु में हीरा पुखराज होईहैं, सिरवा के ताज होईहैं हो

   ये ललना धातु में हीरा पुखराज होईहैं सिरवा के ताज होईहैं हो

   ये ललना धातु में हीरा पुखराज होईहैं,  सिरवा के ताज होईहैं हो

 

4. मुनिबाबा अइसन बाबू ज्ञानी होईहैं राजाजी अइसन दानी होईहैं हो

     ये ललना3 अखिल भूमंडल राजधानी होईहैं बा पे जस खानदानी होईहैं हो

     ये ललना अखिल भूमंडल राजधानी होईहैं बा पे जस खानदानी होईहैं हो

     ये ललना अखिल भूमंडल राजधानी होईहैं बा पे जस खानदानी होईहैं हो


ye bahut hi prashidh sohar hai jo kisi ke ghar bachcha hone par goan ki mahilaye badhayi dete huye gaati hai. 

 


Wednesday, April 10, 2024

Yoga and lifestyle changes for Parkinson's Disease patient . योग और प्राणायाम से पार्किंसन रोग को ठीक कर सकते है



World Parkinson Day 2024



11 अप्रैल वर्ल्ड पार्किंसन डे यानि को विश्व पार्किंसन दिवस मनाया जाता है पार्किंसन रोग नर्वस सिस्टम में धीरे धीरे बढ़ने वाला एक डिसऑर्डर यानि विकार है जिससे सम्पूर्ण शरीर की कार्य प्रणाली प्रभावित होती है इसके लक्षण निम्न प्रकार है शरीर में कम्पन, धीमी गतविधि, सख्त मांसपेशिया, शरीर की असाधारण मुद्रा और संतुलन, स्वाभाविक गतविधियों में विराम, बोली में बदलाव, लिखने पढ़ने में दिक्कत आदि

पार्किंसंस रोग एक गतिविधि और मनोदशा संबंधी विकार है। यह एक ऐसी स्थिति है जो समय के साथ बढ़ती है और तब होती है जब मस्तिष्क में तंत्रिका कोशिकाएं डोपामाइन नामक रसायन को पर्याप्त मात्रा में नहीं बना पाती हैं डोपामाइन एक रसायन है जो स्वाभाविक रूप से आपके मस्तिष्क में बनता है, और आपकी मांसपेशियों और गति के सुचारू नियंत्रण के लिए महत्वपूर्ण है।

पार्किंसंस रोग के लक्षण क्या हैं?

पार्किंसंस रोग के लक्षण अलग-अलग होते हैं। विशिष्ट लक्षण निम्न का संयोजन हैं

शुरुआती लक्षण अस्पष्ट और गैर-विशिष्ट हो सकते हैं, जिससे निदान करना मुश्किल हो जाता है। इनमें शामिल हो सकते हैं:

थकान रहना, बेचैनी होना

 तनावग्रस्त रहना

स्थानीयकृत मांसपेशी दर्द

पार्किंसंस रोग के साथ आपमें विकसित होने वाले अन्य लक्षण आपके चलने-फिरने के तरीके को प्रभावित करते हैं, जैसे:

संतुलन की कमी

बोलने में परेशानी

लिखने में दिक्कत होना

खाना निगलने में दिक्कत

निम्न रक्तचाप, विशेषकर जब लेटने से बैठने, या बैठने से खड़े होने की ओर जा रहा हो

गैर-गतिशीलता लक्षण भी हैं, जैसे:

नींद की समस्याएँ, जिनमें अपने सपनों को साकार करना और नींद में बातें करना शामिल है

कब्ज़, अपच

विचारों का धीमा होना

चिंता और अवसाद

गंध की अनुभूति में कमी

 थकान बनी रहना

अत्यधिक लार का उत्पादन

पार्किंसंस रोग के कई लक्षण अन्य स्थितियों के कारण हो सकते हैं। यदि आप अपने लक्षणों के बारे में चिंतित हैं, तो अपने डॉक्टर से मिलना एक अच्छा विचार है।पार्किंसंस रोग से पीड़ित अधिकांश लोगों का निदान 65 वर्ष की आयु के आसपास किया जाता है, लेकिन निदान किए गए 10 में से 1 व्यक्ति 45 वर्ष से कम उम्र का होता है।

योग और प्राणायाम से पार्किंसन रोग को ठीक कर सकते है

यदि आप पार्किंसन रोग के शुरूआती लक्षणों से प्रभावित है तो आप योगसन और प्राणायाम के द्वारा नियंत्रित कर सकते है नियमित योग अभ्यास से शरीर की स्नायु और मांसपेशियों को शक्तिशाली बनाया जाता है। शुरुआत में में योगासन से आपको थकान हो सकती है किन्तु नियमित अभ्यास से शरीर में रक्त संचार बढ़ेगा और शरीर स्वस्थ होगा । इसके आलावा आप प्रतिदिन सुबह की सैर और साइकिलिंग भी करते है तो लाभ होगा

योगासन

योगासनों का अभ्यास प्रारम्भ करने के पहले किसी योगगुरु से परामर्श अवश्य ले . आसनो का अभ्यास शारीरिक सक्षमता और रोग की उग्रता के अनुसार ही करें पार्किंसन रोग से ग्रसित व्यक्ति को पवनमुक्त आसन जरूर करना चाहिए।



इसके साथ ही उत्तानपादासन, धनुरासन, शलभासन, भुजंगासन, नौकासन, विपरीतकरणी, गोमुखासन, पश्चिमोत्तानासन और शवासन का प्रतिदिन अभ्यास करने से पार्किंसंस रोग के लक्षणों में कमी आती है। इन आसनो का अभ्यास एक से दो मिनट या शारीरिक सक्षमता के अनुरूप ही करें

प्राणायाम कौन कौन से कर सकते है

पार्किंसन रोग को ठीक करने में योग के साथ प्राणायाम बहुत ही लाभकारी है ।  प्राणायाम का अभ्यास करने से पूर्व आपको पद्मासन, अर्ध पद्मासन या सुखासन में बैठ जाये ध्यान रहे कमर और गर्दन सीधे रखे और अपनी श्वास प्रश्वास की गति को संतुलित करते हुए अभ्यास प्रारम्भ करें प्राणायाम करते समय जल्दवाजी करे सुखपुरक और शांत मन से करें तभी इनका लाभ देखने को मिलेगा, सबसे पहले  ऊं यानि उद्गीत प्राणायाम, नाड़ीशोधन, उज्जायी, अनुलोम-विलोम, भ्रामरी प्राणायाम, योग निद्रा का भी विशेष अभ्यास करने से आराम मिलता है।

प्राणायाम कितने समय तक करें

इन सभी प्राणायाम को शुरुआत आप 30 से 45 मिनट तक खाली पेट अभ्यास करे, तो आपको अत्यंत लाभ परिणित होंगे और आपका शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास होगा

प्रेक्षा चिकित्सा

प्रेक्षा यानि अपने अंदर देखना । ये बहुत ही कारगर चिकित्सा है, क्योंकि साइकोलॉजी यानि मनोविज्ञान के अनुसार जैसा आप सोचते है, वैसे ही आप बनते जाते है।

 यानि जब कोई व्यक्ति सोचता है की मैं बीमार हूँ, तो वो और बीमार होता जाता है । अगर आप पॉजिटिव यानि सकारात्मक रहते है तब आप उस बीमारी से जल्द ठीक होते है। ये वही चिकित्सा है इसमें आपको रात्रि या दिन में शांत चित बैठकर मानसिक जप यानि अपने आप से कहना है की मैं ठीक हो रहा हूँ, मैं जल्द से जल्द ठीक हो रहा हूँ ये प्रे यानि प्रार्थना आपको 5 10 मिनट जरूर करनी है इसके बहुत ही लाभ देखने को मिलेंगे, साथ ही अपने मन में संकल्प लेकर कहे की मैं सदैव सकारात्मक ऊर्जा से भरा हुआ हूँ, दूसरों की बुराई से दुखी हो ही किसी की बुराई करें हो सके तो एक माह तक जरूर करें ।

स्वस्थ आहार चिकित्सा

फलों, सब्जियों और अनाजों से भरपूर उच्च फाइबर युक्त आहार खाने और खूब पानी पीने से पार्किंसंस रोग में अक्सर होने वाली कब्ज को रोकने में मदद मिल सकती है। कब्ज को ठीक करने के लिए चोकर युक्त आटा खाये

जंक फूड और अनहेल्दी चीजें खाने से समस्या ज्यादा बढ़ सकती है. अत्यधिक कैफीन, प्रोसेस्ड फूड और रिफाइंड शुगर जैसे खाद्य पदार्थों का इस्तेमाल मेंटल हेल्थ के लिए समस्या पैदा कर सकता है । पार्किंसन रोग से जूझ रहे लोगों को जानकार हमेशा हेल्दी डाइट लेने की सलाह देते हैं।

योगाचार्य डॉ अनूप कुमार बाजपाई

संस्थापक 

आयुष योग एवं वैलनेस क्लिनिक

गुडगाँव, हरियाणा

8882916065 email yogawithanu@gmail.com

अधिक जानकारी के लिए अपने सुझाव और परामर्श के लिए आप ईमेल और मोबाइल के माध्यम से जुड़ सकते है

समस्या बिना कारण नहीं आती, उनका आना आपके लिए इशारा है कि कुछ बदलाव

जीवन में समस्याएं आना आम है। लेकिन इनसे घबराने की बजाय, इनका सामना करने और अपनी ज़िंदगी को बेहतर बनाने के कई तरीके हैं। यहाँ कुछ सुझाव दिए ग...