रामचरितमानस में एक स्थान
पर गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं की यदि आपके मन में किसी चीज या प्रभु को पाने की पूर्ण कामना है तो वह जरूर मिलेंगे।
यह रामचरितमानस के बालकाण्ड का प्रसंग है। इसकी पृष्ठभूमि यह है कि सीताराम वाटिका में एक दूसरे को देख चुके हैं। दोनों एक दूसरे की ओर आकर्षित हैं। स्वयंवर में सीता माता घबरा रही हैं कि कहीं रामजी धनुष उठाने में चुके ना। तभी वो भगवान का ध्यान करके कहती हैं कि उनको रघुवीर की दासी बना दें अर्थात उनका मन पूर्ण समर्पित पत्नी होने का है ।
आगे वह सोचती हैं कि जिसका जिसपर सच्चा स्नेह होता है वह तो उसे मिलता ही है इसमें क्या संदेह।यदि उनका स्नेह सत्य है तो रघुवीर उन्हें ही प्राप्त होंगे।
और आगे ऐसा ही होता है। रामजी शिवधनुष ना केवल उठा लेते हैं बल्कि प्रत्यंचा चढ़ाते समय वो टूट भी जाती है। इस प्रकार सीता स्वयंवर जीत कर श्रीराम जानकी के और जानकी श्रीराम की हो जाती हैं।यह सत्य भी सिद्ध हो जाता है कि सच्चा प्रेम अवश्य अपने प्रेमी को प्राप्त कर लेता है।
जेहि के जेहि पर सत्य सनेहू, सो तेंहि मिलहीं न कछु संदेहू'।
यानी, अगर किसी व्यक्ति का ईश्वर, व्यक्ति अथवा वस्तु पर सच्चा प्रेम हो तो, उसे वह मिल कर ही रहेगी, इसमें कुछ भी संदेह नहीं है।
प्रभु तन चितइ प्रेम तन ठाना। कृपानिधान राम सबु जाना॥
सियहि बिलोकि तकेउ धनु कैसें। चितव गरुरु लघु ब्यालहि जैसें॥
भावार्थ
प्रभु की ओर देखकर सीता ने शरीर के द्वारा प्रेम ठान लिया (अर्थात् यह निश्चय कर लिया कि यह शरीर इन्हीं का होकर रहेगा या रहेगा ही नहीं) कृपानिधान राम सब जान गए। उन्होंने सीता को देखकर धनुष की ओर कैसे ताका, जैसे गरुड़ छोटे-से साँप की ओर देखते हैं।
जय श्री राम
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