Wednesday, June 11, 2025

मेरे पिता अब बूढ़े हो चुके थे और चलते समय दीवार का सहारा लिया करते थे। धीरे-धीरे -story





मेरे पिता अब बूढ़े हो चुके थे और चलते समय दीवार का सहारा लिया करते थे। धीरे-धीरे दीवारों पर उनकी उंगलियों के निशान उभरने लगे—चुपचाप उनकी निर्भरता और कमज़ोरी की कहानी कहने वाले निशान।

मेरी पत्नी को यह बिल्कुल पसंद नहीं था। वह अक्सर शिकायत करतीं कि दीवारें गंदी हो रही हैं। एक दिन पिताजी को सिरदर्द था, उन्होंने सिर पर तेल लगाया और चलते हुए दीवार को सहारा दिया, जिससे तेल के दाग भी दीवारों पर लग गए।
इस पर पत्नी ने मुझ पर नाराज़गी जताई। मैंने ग़ुस्से में पिताजी को डांट दिया, कठोर शब्दों में कहा कि वो दीवार को न छुएं। पिताजी चुप हो गए। उनकी आँखों में दर्द था। मैं भी शर्मिंदा था, पर कुछ कह नहीं पाया।
उस दिन के बाद पिताजी ने दीवार का सहारा लेना छोड़ दिया। एक दिन, संतुलन बिगड़ने से वो गिर पड़े। कूल्हे की हड्डी टूट गई। सर्जरी हुई, लेकिन शरीर ने साथ नहीं दिया… और कुछ ही दिनों में वो हमें छोड़कर चले गए।
मेरे दिल में गहरा पछतावा था। मैं उनकी वो नज़रें कभी नहीं भूल पाया—न ही खुद को माफ़ कर पाया।
कुछ समय बाद हमने घर पेंट करवाने का सोचा। पेंटर आए तो मेरा बेटा, जो अपने दादाजी से बहुत प्यार करता था, दीवार के उन हिस्सों को पेंट नहीं करने देना चाहता था, जहाँ दादाजी के निशान थे।
पेंटर बहुत समझदार और रचनात्मक थे। उन्होंने आश्वासन दिया कि वे उन निशानों को नहीं मिटाएंगे, बल्कि उनके चारों ओर सुंदर गोल डिज़ाइन बना देंगे ताकि वे दीवार की सजावट का हिस्सा बन जाएँ।
और ऐसा ही हुआ। धीरे-धीरे वे निशान हमारे घर की पहचान बन गए। जो भी घर आया, दीवार के उस हिस्से की तारीफ़ किए बिना नहीं रह पाया—बिना ये जाने कि उसके पीछे एक कहानी है।
समय बीतता गया। मैं भी अब बूढ़ा हो चला था। एक दिन चलते समय मुझे भी दीवार का सहारा लेना पड़ा। तभी मुझे याद आया कि मैंने पिताजी से क्या कहा था, और मैंने खुद को बिना सहारे चलाने की कोशिश की।
मेरा बेटा ये देख रहा था। वो तुरंत मेरे पास आया और बोला, “पापा, दीवार का सहारा लीजिए, आप गिर सकते हैं।” और फिर मेरी पोती दौड़कर आई और बोली, “दादू, आप मेरे कंधे का सहारा लीजिए।”
मेरी आँखों से आँसू बहने लगे।
काश, मैंने भी अपने पिताजी के लिए यही किया होता… शायद वो कुछ और समय हमारे साथ रहते।
उन्होंने मुझे सोफ़े पर बिठाया। फिर मेरी पोती अपनी ड्रॉइंग बुक ले आई। उसने मुझे दिखाया—उसकी टीचर ने उसकी पेंटिंग की बहुत तारीफ़ की थी।
उस तस्वीर में वही दीवार थी—जिस पर दादाजी के उंगलियों के निशान थे।
नीचे टिप्पणी थी:
*"हम चाहते हैं कि हर बच्चा अपने बड़ों से ऐसे ही प्यार करे।"*
मैं अपने कमरे में गया, पिताजी से माफ़ी माँगी… और बहुत रोया।
एक दिन हम सब भी बूढ़े होंगे। अगर अभी आपके घर में बुज़ुर्ग हैं, तो उनका ध्यान रखिए। उन्हें प्यार दीजिए, आदर दीजिए। और अपने बच्चों को यही सबक अपने व्यवहार से सिखाइए।
यह कहानी मेरे दिल को गहराई से छू गई।
मैं इसे उन सभी मित्रों से साझा करना चाहती हूँ, जो अब उम्र के उस दौर में हैं, जब पिछली पीढ़ी पीछे छूट रही है।
हम सबने शायद कभी न कभी कोई गलती की है।
अब वक़्त है—सुधरने का।
*Hindi translation of a Tamil story*
*I really cried after reading this story*
Copied

#yaadein_kk #parents 

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