शरीर के तीन तल रहते है: पहला भौतिक जिसके स्वामी है 7 इन्द्रिय 5 कर्म इन्द्रिय (नाक, मुंह, आंख, कान, खाल) और 2 ज्ञान इन्द्रिय (लिंग, मस्तिश्क)।
यह भौतिक तल पर मनुष्य भौतिक संसार के दर्शन करता है।
दूसरा तल मानसिक/आध्यात्मिक है जिसका स्वामी है मन। यह मन मानसिक तंत्र का स्वामी रहता है और इसी में से अहम उतपन्न होता है। अहम होना जरूरी है क्यूंनकि इसी से ही भौतिक तल चलायमान रहता है। कई बार अहम इतना गहरा हो जाता है कि यह व्यक्ति के मानसिक तल को कालिमा से युक्त करके उसके मानसिक तल को ब्लॉक कर देता है। फलस्वरूप व्यक्ति को भौतिक तल पर ही जीना पड़ता है और मानसिक तल कभी कभी ही उसे महसूस होता है।
अंतिम तल है अज्ञात क्यूंनकि उसके बारे में बड़े बड़े ज्ञानी ध्यानी भी कुछ नही बता पाते है। उसमें जाने के बाद आप सत चित आनंद को प्राप्त करते है।
इस तल का स्वामी है आत्मा जो कि मन और इंद्रियों से ऊपर है।
मन का main काम व्यक्ति के अंदर अहम को उतपन करना होता है, यह बिल्कुल किसी गाड़ी के ingine जैसा है जिसका काम गाड़ी में ऊष्मा डालकर उसे चलाना होता है, बिना मन के अहम नही होगा और बिना अहम के इच्छा नही होगी।
मन उतना ही जरूरी है जितना गाड़ी में इंजन का होना लेकिन मन से निकलने वाले अहम को काबू करने की भी जरूरत रहती है। अगर अहम
(ego) हद से ज्यादा हो जाये तो वह अध्यतामिक तल को धूमिल करके मनुष्य को आत्मिक तल पर जाने से रोकती है।
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