अखंड मंडलाकारं व्याप्तम येन चराचरम।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः।।
अर्थ : इस श्लोक का भावार्थ इस प्रकार है। ब्रह्मांड में अखंड स्वरूप उस प्रभु के तत्व रूप को मेरा नमन है जो मेरे भीतर प्रकट होकर मुझे साथ-साथ आत्मज्ञान के दर्शन कराता है। जो अखंड है जो इस पूरे ब्रह्मांड में समाहित है जो चर और अचर में तरंगित है। उस प्रभु के परम तत्व स्वरूप को मैं नमन करता हूं जो मेरे भीतर प्रकट होकर मुझे साक्षात आत्मज्ञान के दर्शन कराता है। गुरु स्वरूप उस तत्व को मेरा शत-शत नमन है वही गुरु ही पूर्ण परम तत्व है। ऐसे परम तत्व स्वरूप गुरु को मेरा नमन है।
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