यदि आप खर्राटे से पीड़ित है तो आज आपके लिए कुछ घरेलु चिकित्सा या
नुस्के है जिनको आप अपनाकर इस समस्या से राहत पा सकते है। ये औषधियां आपके रसोईघर
में ही उपलब्ध है। आइये जानते है -
हल्दी (Turmeric) : हल्दी में एंटी इंफ्लामेटरी गुण होने की वजह से यह
बहुत ही उपयोगी औषधि है। रोज रात में सोने से पहले हल्दी को एक गिलास दूध में उबाल
ले फिर छानकर ठंडा होने दे और जब हल्का गुनगुना हो तब आप दूध को पीना है। हल्दी
में बहुत अनेकों तत्व विधमान है जो आपके लिए काफी लाभदायक है।
गौ घृत यानि गाय का घी Cow Ghee) : रात को सोने से पहले आपको गाय के
घी को थोड़ा सा गर्म करना है उसके पश्चात् एक से दो बूंद नाक के अंदर डाल ले।
ये आपको रात में बहुत राहत देगा साथ ही आपको श्वास लेने में तकलीफ भी नहीं होगी।
कोशिश करे यदि देशी गाय का घी मिल जाये तो सर्वोत्तम है।
शहद का सेवन (Honey) : शहद में अनेको औषधीय गुण विधमान है।
शहद में भरपूर मात्रा में सूजन को कम करने तथा रोगाणुरोधी प्रतिरोधक क्षमता विधमान
होने की वजह से अनेक रोगों में लाभकर है। रात को सोने से पहले आप कुनकुने पानी
में एक से दो चम्मच शहद मिलाकर पीले आपको अच्छी नींद आएगी साथ में खर्राटे भी कम आएंगे।
जलनेति
https://www.youtube.com/watch?v=AtnN8ebf3Yk&list=PLxF7PmNSurw2kMhtO1qirEvk6oGRPvnwo&index=53
जलनेति में नमकीन जल का प्रयोग करने से नाक के अंदर झिल्ली में रक्तप्रवाह बढ़ता है। जलनेति में पानी से नाक की सफाई की जाती है, जिससे आपको साइनस, सर्दी- जुकाम, प्रदूषण से बचाया जा सकता है। इसे करने के लिए नमकीन गुनगुने पानी का इस्तेमाल किया जाता है। इस क्रिया में पानी को नेति पात्र की मदद से नाक के एक छिद्र से डाला जाता है और दूसरे से निकाला जाता है। फिर इसी क्रिया को दूसरे नॉस्ट्रिल से किया जाता है। जलनेति दिन में किसी भी समय की जा सकती है। यदि किसी को जुकाम हो तो इसे दिन में कई बार कर सकते हैं। इसके लगातार अभ्यास से यह नासिका क्षेत्र में कीटाणुओं को पनपने नहीं देती।
आधे लीटर गुनगुने पानी में आधा चम्मच नमक मिलाएं और नेति के बर्तन में इस पानी को भर लें। अब आप कागासन में बैठें। पैरों के बीच डेढ़ से दो फीट की दूरी रखें। कमर से आगे की ओर झुकें। नाक का जो छिद्र उस समय अधिक सक्रिय हो, सिर को उसकी विपरीत दिशा में झुकाएं।
अब नाक के एक छेद में नेति पात्र की नली से पानी डालें। पानी धीरे-धीरे डालें। इस दौरान मुंह खुला रखें और लंबी सांस न लें। यह पानी नाक के दूसरे छेद से निकलना चाहिए। इसी प्रक्रिया को नाक के दूसरे छेद से करें। दोनों छेद से यह प्रक्रिया करने के बाद सीधे खड़े हो जाएं और नीचे सुझाए गए जलनेति क्रिया के पश्चात करने वाले यौगिक अभ्यास को करें। इससे नाक के अंदर का सारा पानी, बैक्टीरिया और म्यूकस बाहर आ जाता है।
नाक की सफाई : यह नाक की सफाई करती है जिससे सांस नली सम्बन्धी परेशानी, पुरानी सर्दी, दमा, सांस लेने में होने वाली समस्या को दूर करती है।
आंख, कान और गले की समस्या दूर : आंखों में पानी आना और आंख में जलन की समस्या कम होती है। कान, और गले को बीमारियों से बचाती है। सिरदर्द, अनिद्रा, सुस्ती में जलनेति करना फायदेमंद है।
यह सुनिश्चित करना जरूरी है की जलनेति क्रिया के बाद नाक के छिद्रों में पानी बचा न रहे क्योंकि इससे सर्दी हो सकती है।
कई बार नथुने बंद हो जाते हैं या सांस लेने में तकलीफ होती है। इससे संक्रमण तथा शरीर के तापमान आदि में वृद्धि हो सकती है। इसलिए जलनेति क्रिया के बाद एक नथुने को बंद करके दूसरे नथुने से, फिर दुसरे नथुने को बंद करके पहले नथुने से धीरे-धीरे हवा बाहर फेंके।
शुरुआत में यह क्रिया किसी एक्सपर्ट की मौजूदगी में करना चाहिए।
जलनेति के बाद नाक को सुखाने के लिए कपालभाति प्राणायाम करना लाभकारी है।
जलनेति करने के तुरंत बाद सोना नहीं चाहिए। इससे पानी श्वास नलिका के मार्ग से होकर फेफड़ों तक पहुंचता है। फेफड़ों में संक्रमण हो सकता है।
नाक को साफ रखे
जल नेति का सबसे बड़ा फायदा यही है कि इसे रोजाना करने से करने से नाक साफ होता है। इससे नाक के बलगम के साथ लगी गंदगी और बैक्टीरिया बाहर निकल जाते हैं। इससे नाक का मार्ग भी साफ होता है। नाक की सफाई के लिए यह तरीका सबसे बेहतरीन है। इसे करने से हे फीवर और पराग से होने वाली एलर्जी (Allergy) से भी छुटकारा मिलता है
राइनाइटिस से बचाएं
जल नेति करने से नाक के अंदर के संवेदनशील उत्तक शांत होते हैं ,जो राइनाइटिस या एलर्जी का कारण बन सकते हैं। यह एक ऐसी प्रभावी तकनीक है, जिससे सांस लेने में आसानी होती है और दमा (Asthma) के लक्षण भी दूर होते हैं।
माइग्रेन (Migrain) से राहत
माइग्रेन की समस्या आजकल सामान्य होती जा रही है और इसके लिए लोग दवाईयों का सहारा लेते हैं। लेकिन अगर वो जल नेति करें तो उन्हें माइग्रेन से राहत मिल सकती है। इसके साथ ही साइनसाइटिस (Sinusitis) से भी छुटकारा मिल सकता है।
अपर रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट (Upper respiratory infection) की सफाई
जल नेति से अपर रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट की सफाई होती है। जिससे इस दौरान होने वाली सामान्य समस्याएं जैसे गले में खराश, टॉन्सिल्स या सुखी खांसी आदि से भी राहत मिलती है।
अस्थमा पेशेंट्स को मिलता है फायदा
जल नेति अस्थमा (Asthma) के मरीजों के लिए लाभकारी होता है। दरअसल जल नेति क्रिया से सांस संबंधी परेशानियों (Breathing problem) को दूर करने में सहायक है, जिससे अस्थमा की परेशानी से भी धीरे-धीरे कम हो सकती है। योगा एक्सपर्ट्स से सलाह लेकर जल नेति करें और अपनी अस्थमा या सांस संबंधी परेशानी को दूर किया जा सकता है।
ब्रोंकाइटिस पेशेंट्स के लिए है लाभकारी
ब्रोंकाइटिस (Bronchitis) से पीड़ित लोगों में ऑक्सिजन लेवल बैलेंस नहीं रहता है, वहीं अगर ब्रोंकाइटिस मरीज जल नेति करते हैं, तो उनमें ऑक्सिजन (Oxygen) सप्लाई बेहतर तरीके से होता है।
1. कपालभाती प्राणायाम
आसान: पद्मासन, सिद्धासन, स्वस्तिकासन अथवा सुखासन में बैठ जाएं।
मस्तिष्क
के अगले भाग को कपाल कहा जाता है। कपालभाती प्राणायाम करने के लिए सिद्धासन, पद्मासन
या वज्रासन में बैठकर सांस को बाहर छोड़ने की क्रिया करें। सांसों को बाहर छोड़ते समय
पेट को अंदर की ओर धकेलने का प्रयास करें। लेकिन ध्यान रहे कि श्वास लेना नहीं है क्योंकि
इस क्रिया में श्वास खुद ही भीतर चली जाती है। कपालभाती प्राणायाम का अभ्यास शुरू में
एक सेकंड में एक बार ब्रीथ करे इस तरह ६० स्ट्रोक के बाद रोककर फिर करे ३ से पांच मिनट
तक करे।
कपालभाती प्राणायाम के लाभ
- यह प्राणायाम का नियमित अभ्यास करने से
न सिर्फ मोटापे की समस्या दूर होती है बल्कि चेहरे की झुर्रियां और आंखों के नीचे
का कालापन दूर होता है और चेहरे की चमक बढ़ाता है।
- कपालभाती प्राणायाम से दांतों और बालों
के सभी प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं।
- कब्ज, गैस, एसिडिटी की समस्या में लाभ होता
है।
- शरीर और मन के सभी प्रकार के नकारात्मक
भाव और विचार दूर होते हैं।
2. भस्त्रिका प्राणायाम
आसान: पद्मासन, सिद्धासन, स्वस्तिकासन अथवा सुखासन में बैठ जाएं।
भस्त्रिका
प्राणायाम करने के लिए पद्मासन में बैठकर, दोनों हाथों से दोनों घुटनों को दबाकर रखें।
इससे पूरा शरीर (कमर से ऊपर) सीधा बना रहता है। अब मुंह बंद कर दोनों नासापुटों से
पूरक-रेचक झटके के साथ जल्दी-जल्दी करें। आप देखेंगे कि श्वास छोड़ते समय हर झटके से
नाभि पर थोड़ा दबाव पड़ता है। इस तरह बार-बार इसे तब तक करते रहना चाहिए जब तक कि थकान
न होने लगे। इसके बाद दाएं हाथ से बाएं नासापुट को बंद कर दाएं से ज्यादा से ज्यादा
वायु पूरक के रूप में अंदर भरें। आंतरिक कुम्भक करने के बाद धीरे-धीरे श्वास को छोड़ें।
यह एक भास्त्रका कुम्भक होता है।
दोबारा
करने के लिए पहले ज्यादा से ज्यादा पूरक-रेचक के झटके, फिर दाएं नासा से पूरक, और फिर
कुम्भक और फिर बायीं नासा से रेचक करें। इस प्रकार कम से कम तीन-चार बार कुम्भक का
अभ्यास करें। भस्त्रिका प्राणायाम अभ्यास ३ से पांच मिनट तक करे।
लाभ
·
हमारा
हृदय सशक्त बनाने के लिये है।
·
हमारे
फेफड़ों को सशक्त बनाने के लिये है।
·
मस्तिष्क
से सम्बंधित सभी व्याधिओं को मिटाने के लिये भी यह लाभदायक है।
·
पार्किनसन,
पैरालिसिस, लूलापन इत्यादि स्नायुओं से सम्बंधित सभी व्यधिओं को मिटाने के लिये।
·
भगवान
से नाता जोडने के लिये।
·
लेकिन हृदय रोग, फेंफडे के रोग और किसी भी प्रकार
के अन्य गंभीर रोग होने पर में यह प्राणायाम नहीं करना चाहिए।
3. अनुलोम–विलोम प्रणायाम
आसान: पद्मासन, सिद्धासन, स्वस्तिकासन अथवा सुखासन में बैठ जाएं।
अनुलोम–विलोम प्रणायाम में सांस लेने व छोड़ने
की विधि को बार-बार दोहराया जाता है। इस प्राणायाम को 'नाड़ी शोधक प्राणायाम' भी कहा
जाता है। अनुलोम-विलोम को नियमित करने से शरीर की सभी नाड़ियों स्वस्थ व निरोग रहती
है। इस प्राणायाम को किसी भी आयु का व्यक्ति कर सकता है।
अब अपने दाहिने हाथ के अंगूठे से नाक के दाएं
छिद्र को बंद करें और नाक के बाएं छिद्र से सांस अंदर भरें और फिर ठीक इसी प्रकार बायीं
नासिका को अंगूठे के बगल वाली दो अंगुलियों से दबा लें। इसके बाद दाहिनी नाक से अंगूठे
को हटा दें और सांस को बाहर फैंके। इसके बाद दायीं नासिका से ही सांस अंदर लें और दायीं
नाक को बंद करके बायीं नासिका खोलकर सांस को 8 तक गिनती कर बाहर फैंकें। इस क्रिया
को पहले 3 मिनट और फिर समय के साथ बढ़ाते हुए 10 मिनट तक करें। इस प्रणायाम को सुबह-सुबह
खुली हवा में बैठकर करें।
अनुलोम विलोम प्राणायाम के लाभ
- मन
को शांत और केंद्रित करने के लिए यह एक बहुत अच्छी क्रिया है।
- भूतकाल के लिए पछतावा करना और भविष्य के
बारे में चिंतित होना यह हमारे मन की एक प्रवृत्ति है। नाड़ी शोधन प्राणायाम मन
को वर्तमान क्षण में वापस लाने में मदद करता है।
- श्वसन प्रणाली व रक्त-प्रवाह तंत्र से सम्बंधित
समस्याओं से मुक्ति देता है।
- मन और शरीर में संचित तनाव को प्रभावी ढंग
से दूर करके आराम देने में मदद करता है।
- मस्तिष्क के बाएँ और दाएँ गोलार्ध को एक
समान करने में मदद करता है, जो हमारे व्यक्तित्व के तार्किक और भावनात्मक पहलुओं
से संबंधी बनाता है।
- नाड़ियों की शुद्धि करता है और उनको स्थिर
करता है, जिससे हमारे शरीर में प्राण ऊर्जा का प्रवाह हो।
- शरीर का तापमान बनाए रखता है।
Note: दिल के रोगी कुम्भक न लगाए वगैर कुम्भक
के अनुलोम विलोम करे हृदय रोगों,
हाई ब्लड प्रेशर और पेट में गैस आदि शिकायतों में यह प्राणायाम धीरे धीरे करना चाहिये
(60 बार एक मिनट में ) है।
नाड़ीशोधन प्राणायाम
- इस
प्राणायाम कि मुख्य विशेषता यह है कि बाएं एवं दाएं नासिकारंध्रों के द्वारा
एकांतर रूप से श्वास प्रश्वास को रोककर अथवा बिना श्वास प्रश्वास रोके श्वसन
करना चाहिए ।
शारीरिक स्थिति: पद्मासन, सुखासन या सिद्धासन में बैठना है ।
अभ्यास विधि:
- आसन
में बैढ़कर मेरुदंड कि अस्थि एवं शिर को सीधा रखें तथा ऑंखें बंद होनी चाहिए ।
- कुछ
गहरी श्वास के साथ शरीर को शिथिल करना चाहिए ।
- ज्ञान
मुद्रा में बाई हथेली बाएं घुटने कि ऊपर रखनी चाहिए ।
- दायां
हाथ नासाग्र मुद्रा में होना चाहिए ।
- अनामिका
एवं कनिष्ठिका अंगुली बाई नाशिका पर होनी चाहिए । मध्यमा और तर्जनी को मोड़कर
रखें । दाये हाथ का अंगूठा दाई नासिका पर रखना चाहिए ।
- बाई
नासिका से श्वास ग्रहण करे । इसके बाद कनिष्ठका और अनामिका अंगुलिओं से बाई
नासिका बंद कर देनी चाहिए । दाई नासिका से अंगूठा हटा कर दाई नासिका से श्वास
बाहर छोड़ना चाहिए ।
- तत्पश्चात
एक बार, दाई नासिका के द्वारा श्वास ग्रहण करना चाहिए ।
- श्वासोच्छ्वास
के अंत में, दाई नासिका को बंद करें, बाई नासिका खोलें तथा इसके द्वारा श्वास
बाहर छोड़ दे ।
- यह
पूरी प्रक्रिया नाड़ी शोधन या अनुलोम विलोम प्राणायाम का एक चक्र है ।
- यह
पूरी प्रक्रिया पांच बार दुहराई जानी चाहिए ।
अनुपात एवं समय
- प्रारंभिक
अभ्यासियों के लिए श्वासोच्छ्वास की क्रिया की अवधि बराबर होनी चाहिए ।
- धीरे
-धीरे इस श्वासोच्छ्वास की क्रिया को क्रमशः१:२ कर देना चाहिए ।
श्वसन
- श्वसन
क्रिया मंद, समान एवं नियंत्रित होनी चाहिए । इसमें किसी भी प्रकार का दबाव
या अवरोध नहीं होना चाहिए ।
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