उच्च रक्तचाप को अगर आधुनिकता का अभिशाप कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। इस तथाकथित प्रगतिशील युग ने जहां अनेक सुख-सुविधाओं के साधन जुटाए हैं, वहीं मानसिक अप्रसन्नता, चिंता, शोक, क्रोध आदि की स्थितियां भी पैदा की हैं, जिनसे मस्तिष्क, हृदय, आत्मा, ज्ञानेन्द्रियां और कर्मेंद्रियां प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकती हैं। हमारे शरीर में रक्त वाहिनी धमनियों में जो रक्त दौड़ता है उसको दौड़ने की गति हृदय से मिलती है, जो दिन-रात पम्पिंग मशीन की तरह कार्य करते हुए रक्त को पम्प करता रहता है। इसे दिल की धड़कना कहते हैं। हृदय के दबाव से रक्त धमनियों में पहुंचता है और सारे शरीर में भ्रमण करते हुए वापस हृदय के पास लौट आता है। हृदय रक्त को शुद्ध करके वापस शरीर में भ्रमण के लिए धमनियों में भेज देता है। रक्त पर हृदय की पम्पिंग का जो दबाव पड़ता है इसे रक्तचाप कहते हैं। इस प्रकार ब्लड प्रेशर होना स्वाभाविक प्रक्रिया है।
कोई रोग नहीं है पर जब कुछ कारणों से यह दबाव बढ़ता है तो इसे उच्च रक्तचाप कहते हैं और यदि दबाव कम होता है तो इसे निम्न रक्तचाप कहते हैं। उच्च रक्तचाप आरामतलब वर्ग का रोग है। जैसे बुद्धिजीवी, वकील, लेखक, अधिक धन-धान्य से संपन्न व्यक्ति एवं चिंतनशील वैज्ञानिक आदि। एलोपैथिक औषधियों का अंधाधुंध प्रयोग भी इस रोग का कारण है। गांवों की अपेक्षा यह रोग शहरों में अधिक पाया जाता है। यह रोग मनुष्य के शरीर में चोर दरवाजे से प्रविष्ट होता है। जिसका प्रारंभ में मनुष्य को नहीं पता चलता है, और यह शरीर में अच्छी तरह अपना स्थान बना लेता है। इसीलिए इस रोग को साइलेंट किलर के नाम से जाना जाता है।
शीतली प्राणायाम
प्राणायाम (आक्सीजन) के बिना जीवन संभव नहीं है। शीतली प्राणायाम से तन-मन शीतल होता है इसलिए इसे शीतली प्राणायाम कहते हैं।
शीतली प्राणायाम
प्राणायाम (आक्सीजन) के बिना जीवन संभव नहीं है। शीतली प्राणायाम से तन-मन शीतल होता है इसलिए इसे शीतली प्राणायाम कहते हैं।
विधि- पद्मासन या सुखासन की मुद्रा में बैठ जाएं। दोनों हाथों को घुटनों पर ज्ञान मुद्रा में रखें। आंखें बंद करके मन-मस्तिष्क को शांत करें। जीभ के दोनों किनारों को ऊपर की ओर मोड़कर गोल नली के समान बना लें और फिर श्वास को अपने मुंह से लें। जब तक आप श्वास रोक सकते हैं यथासंभव रोकें और उसके बाद दोनों नाकों के छिद्र से श्वास बाहर निकाल दें। यह एक चक्र खत्म हुआ, इसी प्रकार इस क्रिया को नए साधकों को कम से कम 10 बार करना चाहिए।
लाभ- यह प्राणायाम उच्च रक्तचाप, मन को शांत एवं क्रोध को शांत करने में बहुत ही लाभप्रद है। इसे करने से पित्त, कब्ज, पेट के रोग, चर्म रोग, पेट की गर्मी, गले के रोग भी ठीक हो जाते हैं।
विशेष- कफ प्रकृति के व्यक्ति के लिए इस प्राणायाम का अभ्यास नहीं करना चाहिए। दमा और टांसिल के रोगियों को इस प्राणायाम का अभ्यास कुशल योग शिक्षक के नेतृत्व में करना चाहिए।
सुप्त पवन मुक्तासन
पवन का अर्थ होता है वायु यानी जिस आसन के करने से पवन शरीर से मुक्त होती है वह कहलाता है सुप्त पवन मुक्तासन। पीठ के बल लेट जाएं, पैरों को फैला लें। उसके बाद अपना दाहिना घुटना मोड़कर सिर की तरफ ले आएं। अब घुटने को नाक से स्पर्श कराते हुए अपने सिर को उठा लें। जांघ से पेट को दबाने का प्रयास करें हाथ-पैर या तो जमीन पर रहे या फिर जमीन से थोड़ा उठ जाए। कुछ देर इस अवस्था में रुकें और फिर धीरे-धीरे जमीन पर आ जाएं। इसी प्रकार से यह क्रिया दूसरे पैर से भी करें। इस अभ्यास को दोनों पैरों से ५-५ बार अवश्य करें।
विशेष- कफ प्रकृति के व्यक्ति के लिए इस प्राणायाम का अभ्यास नहीं करना चाहिए। दमा और टांसिल के रोगियों को इस प्राणायाम का अभ्यास कुशल योग शिक्षक के नेतृत्व में करना चाहिए।
सुप्त पवन मुक्तासन
पवन का अर्थ होता है वायु यानी जिस आसन के करने से पवन शरीर से मुक्त होती है वह कहलाता है सुप्त पवन मुक्तासन। पीठ के बल लेट जाएं, पैरों को फैला लें। उसके बाद अपना दाहिना घुटना मोड़कर सिर की तरफ ले आएं। अब घुटने को नाक से स्पर्श कराते हुए अपने सिर को उठा लें। जांघ से पेट को दबाने का प्रयास करें हाथ-पैर या तो जमीन पर रहे या फिर जमीन से थोड़ा उठ जाए। कुछ देर इस अवस्था में रुकें और फिर धीरे-धीरे जमीन पर आ जाएं। इसी प्रकार से यह क्रिया दूसरे पैर से भी करें। इस अभ्यास को दोनों पैरों से ५-५ बार अवश्य करें।
लाभ- कब्ज, गैस, आलस्य, रक्त विकार आदि रोगों में यह संजीवनी बूटी है। पुराना गठिया और कमर दर्द इसके अभ्यास से दूर होता है। यह आसन मेरुदण्ड तथा ग्रीवा को मजबूत करता है और हाई ब्लड प्रेशर को कम करता है।
विशेष- स्लिपडिस्क, हाई ब्लड प्रेशर के पुराने मरीज, हृदय रोगी और साइटिका के रोगी योग शिक्षक की देख-रेख में करें।
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