Wednesday, December 24, 2014

क्लिनिकल ट्रायल में नुकसान पर 66 लाख तक मुआवजा

क्लिनिकल ट्रायल में नुकसान पर 66 लाख तक मुआवजा


प्रतीकात्मक तस्वीर
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सोमा दास, नई दिल्ली
दवाओं के क्लिनिकल ट्रायल के चलते जो वॉलंटिअर सामान्य जिंदगी जीने लायक नहीं रह जाते हैं, उनको फार्मा कंपनियों से 1.8 लाख से 66 लाख रुपये तक का मुआवजा मिल सकता है। दरअसल सरकार ने क्लिनिकल ट्रायल के दौरान वॉलंटियर को गैर जानलेवा नुकसान के मुआवजे के लिए एक फॉर्म्युला तैयार किया है।

मुआवजे की रकम उनकी उम्र, हेल्थ रिस्क प्रोफाइल और अक्षमता के लेवल के हिसाब से तय होगी। कुछ समय पहले सरकार ने एक फॉर्म्युले के आधार पर क्लिनिकल ट्रायल के दौरान वॉलंटिअर की मौत होने पर मुआवजा देना शुरू किया था, जिसमें उसकी उम्र और हेल्थ प्रोफाइल को ध्यान में रखा जाता है।

आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, इस साल अब तक मुआवजे के ऐसे 21 मामले सेटल हुए हैं जिसमें पीड़ित के परिजनों को 2 लाख से 34 लाख रुपये तक दिए गए हैं। अफसरों ने इकनॉमिक टाइम्स को बताया कि साल की शुरुआत में हेल्थ मिनिस्ट्री के बनाए एक एक्सपर्ट ग्रुप ने कहा था कि सेहत को सबसे ज्यादा नुकसान वॉलंटिअर की मौत के रूप में हो सकता है। इसलिए किसी के अक्षम होने पर मिलने वाला मुआवजा, उसकी मौत पर मिलने वाले मुआवजे से कम होना चाहिए।

पूरी तरह हमेशा के लिए सामान्य जीवन जीने में अक्षम होने पर मुआवजे की रकम मौत पर मिलने वाले मुआवजे का 90 पर्सेंट हो सकती है। अक्षमता के लेवल के हिसाब से यह रकम घट सकती है। ये कदम हेल्थ ऐक्टिविस्ट्स की ये चिंताएं दूर करने के लिए शुरू किए गए सरकारी अभियान का हिस्सा हैं कि फार्मा कंपनियां उन मामलों में क्लिनिकल ट्रायल के लिए वॉलंटिअर को मुआवजा नहीं देती हैं जिनमें उनको शारीरिक नुकसान होता है।

मल्टिनैशनल कंपनियों की प्रायोगिक दवाओं के परीक्षण के लिए जिन मरीजों के नाम दिए गए थे, उनमें कम-से-कम 510 जनवरी 2005 से अब तक दवाओं से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं लेकिन इनमें से किसी को मुआवजा नहीं दिया गया है। यह बात ड्रग रेग्युलेटरी एक्सपर्ट सी एम गुलाटी ने सुप्रीम कोर्ट में हेल्थ मिनिस्ट्री की तरफ से इस साल अप्रैल में जमा किए गए डेटा के हवाले से कही है। सुप्रीम कोर्ट अभी इस मामले में जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है।

ग्लोबल कॉन्ट्रैक्ट रिसर्च ऑर्गनाइजेशन किंटेलेस की इंडियन यूनिट के फॉर्मर चीफ मेडिकल ऑफिसर एस मुखर्जी बताते हैं कि यह तय करना लगभग नामुमकिन है कि वॉलंटिअर का हाल क्लिनिकल ट्रायल की वजह से बेहाल हुआ है या नहीं? उन्होंने कहा, 'इन्हीं सब बुनियादी दिक्कतों के चलते कहीं भी क्लिनिकल ट्रायल्स के लिए तब तक मुआवजा नहीं दिया जाता है जब कि इसमें स्पॉन्सर की तरफ से रूल तोड़े जाने की बात सामने नहीं आती हो।'

इकनॉमिक टाइम्स के मोटे अनुमान के मुताबिक, अगर ट्रायल में शामिल किसी शख्स के बच्चे को जन्म से कोई बीमारी होती है तो नए मेथड के हिसाब से उस परिवार को मुआवजे के तौर पर हर महीने 4300 रुपये मिल सकते हैं।

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