Yogi Dr Anoop Kumar Bajpai
Yog and Wellness clinic
Gurgaon, Haryana
Contat No. 8882916065
योगनिद्रा क्या है और इसको करने की विधि
योग
साधना में उच्चतर
सोपान की क्रियायों
प्रत्याहार, धारणा, ध्यान आदि
के लिये भूमिका
तैयार करने में
योग निद्रा एक
महत्पूर्ण क्रिया है ।
चूँकि योग निद्रा
में साधक की
चित्त की वृतियां
कुछ क्षण के
लिये अंतर्मुखी होती
है इसलिए इसे
प्रत्याहार की ही
एक महत्पूर्ण क्रिया
कह सकते है
।
योग-निद्रा एक प्रकार से आध्यात्मिक निद्रा है जो शरीर को न केवल बाह्य रूप से अपितु आंतरिक रूप से भी आराम पहुँचाती है इससे शरीर प्रसन्न एवं प्रफुल्लित बना रहता है । योग -निद्रा की स्थिति में साधक न पूर्ण रूप से जाग्रत स्थिति में रहता है और न ही पूर्ण सुषुप्ति की अवस्था में ।
इसके अभ्यास में बाह्य जगत से सम्बंद विच्छेद होकर आंतरिक अनुभूति होकर अन्तः जगत से अवचेचन तथा अचेतन सम्बन्ध जोड़ने लगता है जो शरीर एवं मन को तनाव रहित बनाता है ।
यह क्रिया शारीरिक तनाव को दूर ही करता है साथ ही मानसिक, प्राणिक, भावनात्मक तनावों को भी दूर करने में सहयोगी है । थकावट, निष्क्रियता आदि में इस क्रिया का अभ्यास शरीर में नयी स्फूर्ति एवं ताजगी का संचार करता है ।
नींद ठीक से
आएगी । शरीर
में अनावश्यक भारीपन या
व्यग्रता नहीं रहता
है ।
यह शरीर की
पाचन क्रिया को
तो सामान्य बनाने
में तो सहायक
है ही प्राण
एवं रक्त संचार
को भी व्यवस्थित,
सहज एवं समरूपता
प्रदान कर ह्रदय
रोग, रक्तचाप आदि
में लाभ पहुंचाती
है । सामान्य
रूप से योगनिद्रा
का अभ्यास निम्नलिखित
विधि से किया
जा सकता है
।
विधि - सर्वप्रथम शवासन की स्थिति में लेटकर दोनों पैरों के बीच लगभक एक फ़ीट की दूरी रखकर दोनों हांथों को कमर के बगल में रखकर हथेलियों को ऊपर की ओर खुला रखें । आँखें बंद करके श्वास सहज एवं सामान्य रखें । श्वास सहज एवं सामान्य होने पर मन स्वतः सहज एवं सामान्य स्थिति में हो जायेगा ।
अब मन से शरीर के विभिन्न अंगों की क्रमिक रूप से स्पस्ट एवं जीवन्त कल्पना करे । शरीर के प्रत्येक अंग को रंग, रूप, बनावट आदि को पूरी सजगता, स्पस्टता ओर जीवंतता के साथ सतत रूप से साक्षी भाव से देखें परन्तु यह आपका प्रयास मन की आँखों से करे ओर निद्रा में न जाय।
योग - निद्रा का इसी प्रकार अभ्यास किसी प्रिय वस्तु, देव प्रतिमा अथवा किसी प्राकृतिक दृश्य आदि पर किया जा सकता है । शरीर पर योग निद्रा का अभ्यास करने के लिये शरीर के प्रत्येक अंग के रूप, वनावट पर क्रमशः अन्तश्चक्षु से कल्पना करते हुए इसे देखें ।
सर्वप्रथम दायें पैर को लें, पुरे पैर की मन से कल्पना करते हुए उसकी बनावट आदि की कल्पना करें । अब पैर के एक-एक भाग की कल्पना करें । दायें पैर का अंगूठा, अंगूठे के बगल की अंगुली, दूसरी, तीसरी अंगुली चौथी अंगुली, पंजा, टखना, घुटना, जांघ, दाया पैर, पूरा दाया पैर जमीन से स्पर्श कर रहा है इसी प्रकार बायें पैर का अंगूठा, अंगूठे के बगल की अंगुली , दूसरी, तीसरी और चौथी अंगुली, बाये पैर का पंजा, टखना, घटना, जांघ, दायें पैर का टखना आदि बायां पैर जमीन से स्पर्श कर रहा है,
बायां पैर की जमीन से स्पर्श रेखा, कमर, पेट, छाती, पीठ, गर्दन, दायां कान, बायां कान, दायी आँख की ऊपरी पलक निचली पलक दोनों पलकों की स्पर्श रेखा बांयीं आंख की ऊपरी पलक, निचली पलक दोनों पलकों की स्पर्श रेखा, दायी नाक, बायीं नाक, दायां बायां गला, बायां गाल, दायां गाल, ऊपर के ओष्ट, निचे के ओष्ट दोनों ओष्ठों की स्पर्श-रेखा, ठुड्डी, अपना पूरा चेहरा, दांया हाथ, दायें हाथ का अंगूठा, तर्जनी अंगुली, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा हथेली, कोहनी, कंधा, दायां हाथ जमीन पर स्पर्श कर रहा है
दांया हाथ
जमीन पर स्पर्श
कर रहा है
।दांया हाथ, बायां
हाथ का अंगूठा,
तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा,
हथेली, कलाई, कोहनी, कंधा,
पूरा बांया हाथ
तथा जमीन की
स्पर्श रेखा पूरा
शरीर जो शव
के समान पड़ा
है उस की
सतत कल्पना, श्वास-प्रश्वास की स्वाभाविक
सहज स्थिति का
मनन करें ।
योग
निद्रा पूर्ण होने पर
पुरे शरीर को
तनाव दे या
ताड़ासन करें, पूरी क्रिया
पूर्ण होने पर
आँखें धीरे -धीरे
से खोले ।
पूरी क्रिया में
जो आंतरिक शान्ति
और आनंद की
प्राप्ति हुई उसकी
अनुभूति करें ।
इसका अभ्यास समयानुसार
किया जा सकता
है ।
इस
प्रकार योग-निद्रा
का अभ्यास शवासन
में लेटकर किसी
देव-प्रतिमा अथवा
प्राकृतिक दृश्य पर भी
किया जा सकता
है ।
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