Saturday, October 1, 2022

How to Live Stress Free Life.. तनाव मुक्त जीवन कैसे जिएं

 मैं एक योग और वेलनेस कंसल्टेंट हूं और पीठ दर्द, पीठ के निचले हिस्से में दर्द, फ्रोजन शोल्डर, साइनसाइटिस, बीपी, शुगर, तनाव, अवसाद और मानसिक शांति जैसी विभिन्न बीमारियों के इलाज के लिए बिना दवा के 12 साल से अधिक का अभ्यास कर रहा हूं। मेरी विशेषता साइनस, अवसाद, तनाव और स्मरण शक्ति में वृद्धि है।

तनाव मुक्त जीवन कैसे जिएं..

इन दिनों भाग-दौड़ की जिंदगी में अमूमन लोग कुछ हद तक टेंशन (तनाव) में रहते है। तनाव पैदा होने की कई वजह हो सकती है, जैसे किसी तरह का टकराव, बढ़ती प्रतिस्पर्धा काम करनेकी समय सीमा धन कमाने की होड़ दुख, नाउम्मीद आदि। ऐसे समय में आप खुद को पहचानिएऔर अपनी क्षमता के अनुसार काम में लचीला रूख अपनाइए ताकि आप लगातार उत्साहित होतेरहे। बहरहाल टेंशन से निजात पाने के लिए सहज तरकीब के जरिये आपको इससे मिलेगी मुक्तिऔर मानसिक शांति।

1. सकारात्मक सोच : आप नकारात्मकता को उत्सर्ग कर सकारात्मक सोच रखें। यह सोच हमेशा हमें मन मस्तिष्क के अंदर-बाहर किसी भी बात से परेशान होने नहीं देती औरदिशा निर्देश दे कर शांति स्तर पर पहुंचती है जबकि नकारात्मक सोच हमारी जिन्दगीको दिग्भ्रमित कर देती है।

2. प्राणायाम या व्यायाम : मन-मस्तिष्क को तरोताजा रखने के लिए प्राणायाम या व्यायामएक बेहद उपयोगी साधन है। इसके यमित अभ्यास करने से कांतिमय तो होते ही है।साथ ही हम हल्का फुल्का महसूस करते है और अंदर मौजूद ऊर्जा का सदुपयोग कर पातेहैं तथा मानसिक तनाव रहित हो जाते हैं।

3. प्रसन्नता : हर दर्द की दवा है प्रसन्नता। टेंशन मुक्ति के लिए हास-परिहास को जिंदगी मेंशामिल कर प्रसन्नचित रहिए। यह आपके क्रोध, चिंता, खिन्नता, निराशा औरचिड़चिड़ेपन आदि पर मरहम का काम करता है।

4.दिनचर्या का बदलाव : नित्य एक ही काम करने या एक ही जगह ठहरने से मानव स्वभावबदलाव चाहता है तो रुचि के अनुसार दिनचर्या का बदलाव करें। इससे अपने बारे मेंअच्छा महसूस करेंगे और जीवन की एकरसता टूटेगी।

5. अपने लिए वक्त : भाग दोड़ की जिंदगी में अपने लिए वक्त निकाले। यह आपका हक हैजिसके आधार पर आप तय कर सकते हैं कि आपकी मंजिल क्या है? यह आपकी निजीखोज है।इसे कोई छीन नहीं सकता।

6. नयी पहल : अक्सर अवसर चूक जाने के पश्चात पछतावे के अलावा और कुछ हाथ नहींलगता इसलिए जो बीत गई सो बात गई, वाला कथन अपनाइए और आगे की सुधि लेतेहुए नई पहल करें।

7. रचनात्मक कार्य : खाली समय मूड का सबसे बड़ा दुश्मन माना गया है। अत: सदैव दिमागको रचनात्मक कार्यों में लगा देने से मूड खुशनुमा बना रहता है और मानसिक बाधाए दूरहो जाती है। अगर आप उपरोक्त टिप्स पर अमल करें तो निश्चय ही जिंदगी की भागमभाग में सबसे सद्भूत तथा टेंशन मुक्त होकर तरोताजा दिखेंगे।

8. खुल कर करें मेल : मिलाप अक्सर देखने में आता है कि व्यक्ति काम की अधिकता औरव्यस्तता के कारण परिवार और मित्रों के साथ के लिये भी वक्त नहीं निकाल पाता। होनायह चाहिये कि प्रतिदिन, चाहे आधा घंटा ही सही पर अपने प्रियजनों के लिये वक्तअवश्य निकालना चाहिये। अपनों के साथ अपने सुख.

धिक जानकारी के लिए आप मुझसे मेरे क्लिनिक में आकर योग और ध्यान से सम्बंदित प्रश्न और तनाव को कम करने के लिए २१ दिनों का मैडिटेशन प्रोग्राम में भाग ले सकते है। मेरा पूरा पता इस प्रकार है। आप मुझे निचे दिए मोबाइल में कॉल कर सकते है 8882916065. anoopmlib@gmail.com

मैं एक योग और वेलनेस कंसल्टेंट हूं और पीठ दर्द, पीठ के निचले हिस्से में दर्द, फ्रोजन शोल्डर, साइनसाइटिस, बीपी, शुगर, तनाव, अवसाद और मानसिक शांति जैसी विभिन्न बीमारियों के इलाज के लिए बिना दवा के 12 साल से अधिक का अभ्यास कर रहा हूं। मेरी विशेषता साइनस, अवसाद, तनाव और स्मरण शक्ति में वृद्धि है।

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डॉ अनूप कुमार बाजपेई संचालक
आयुष योग एवं वैलनेस क्लिनिक फ्लैट नंबर 1101 टावर 11 पिरामिड अर्बन होम्स, सेक्टर 71A गुडगाँव, हरियाणा 122101

Friday, September 30, 2022

Download UGC NET Yoga Question Paper 2019 PDF in Hindi

Who said yoga is the identification of self with divinity?

 Answer:

The great sage Patanjali is regarded as the Father of Yoga. According to the great sage the practice of yoga leads to the union of individual consciousness with that of universal consciousness. There is a perfect harmony between the Mind and the Body, Man and Nature and Man and God.

महान ऋषि पतंजलि को योग का जनक माना जाता है। महान ऋषि के अनुसार योग का अभ्यास व्यक्तिगत चेतना के साथ सार्वभौमिक चेतना के मिलन की ओर ले जाता है। मन और शरीर, मनुष्य और प्रकृति और मनुष्य और ईश्वर के बीच एक पूर्ण सामंजस्य है।



Wednesday, September 21, 2022

समाधि

 


ध्यान की अंतिम अवस्था का नाम समाधि है जो की स्थिरचित की सर्वोत्तम अवस्था है। 

आत्मविस्मृत की तरह ध्यान ही समाधि है। 

ध्यान करते करते जब तक साधक आत्मविस्मृत हो जाता है, जब केवल धेयय विषयक सत्ता की ही उपलब्धि होती रहती है तथा अपनी सत्ता विस्मृत हो जाती है।  

धेय्य से अपना पृथकत्व की अनुभूति नहीं होती है तब धेय्य विषय पर उस प्रकार का चित्त स्थैर्य ही समाधि है।  समाधि साधना की खोज का अंत है। ( प.यो.द.3 /4)

योग आसन शुरुआत करने के नियम Rules and Regulations for starting yoga practice

 

योग आसन शुरुआत करने के नियम   

आसनों को सीखना प्रारम्भ करने से पूर्व कुछ आवश्यक सावधानियों पर ध्यान देना आवश्यक है। आसन प्रभावकारी तथा लाभदायक तभी हो सकते हैं, जबकि उसको उचित रीति से किया जाए।

1. योगासन शौच क्रिया एवं स्नान से निवृत्त होने के बाद ही किया जाना चाहिए तथा एक घंटे पश्चात स्नान करें।

2. योगासन समतल भूमि पर आसन बिछाकर करना चाहिए एवं मौसमानुसार ढीले वस्त्र पहनना चाहिए।

3. योगासन खुले एवं हवादार कमरे में करना चाहिए, ताकि श्वास के साथ आप स्वतंत्र रूप से शुद्ध वायु ले सकें। अभ्यास आप बाहर भी कर सकते हैं, परन्तु आस-पास वातावरण शुद्ध तथा मौसम सुहावना हो।

4. आसन करते समय अनावश्यक जोर लगाएँ। यद्धपि प्रारम्भ में आप अपनी माँसपेशियों को कड़ी पाएँगे, लेकिन कुछ ही सप्ताह के नियमित अभ्यास से शरीर लचीला हो जाता है। आसनों को आसानी से करें, कठिनाई से नहीं। उनके साथ ज्यादती करें।

5. मासिक धर्म, गर्भावस्था, बुखार, गंभीर रोग आदि के दौरान आसन करें।

6. योगाभ्यासी को सम्यक आहार अर्थात भोजन प्राकृतिक और उतना ही लेना चाहिए जितना ि पचने में आसानी हो। वज्रासन को छोड़कर सभी आसन खाली पेट करें।

7. आसन के प्रारंभ और अंत में विश्राम करें। आसन विधिपूर्वक ही करें। प्रत्येक आसन दोनों ओर से करें एवं उसका पूरक अभ्यास करें।

8. यदि आसन को करने के दौरान किसी अंग में अत्यधिक पीड़ा होती है तो किसी योग चिकित्सक से सलाह लेकर ही आसन करें।

9. यदि वातों में वायु, अत्यधिक उष्णता या रक्त अत्यधिक अशुद्ध हो तो सिर के बल किए जाने वाले आसन किए जाएँ। विषैले तत्व मस्तिष्क में पहुँचकर उसे क्षति पहुँचा सकें, इसके लिए सावधानी बहुत महत्वपूर्ण है।

10. योग प्रारम्भ करने के पूर्व अंग-संचालन करना आवश्यक है। इससे अंगों की जकड़न समाप्त होती है तथा आसनों के लिए शरीर तैयार होता है। अंग-संचालन कैसे किया जाए इसके लिए 'अंग संचालन' देखें।

अंतत: आसनों को किसी योग्य योग चिकित्सक की देख-रेख में करें तो ज्यादा अच्छा होगा।

योगासनों के गुण और लाभ Benefits and Characteristics of Yoga

योगासनों के गुण और लाभ

(1) योगासनों का सबसे बड़ा गुण यह हैं कि वे सहज साध्य और सर्वसुलभ हैं। योगासन ऐसी व्यायाम पद्धति है जिसमें तो कुछ विशेष व्यय होता है और इतनी साधन-सामग्री की आवश्यकता होती है।

(2) योगासन अमीर-गरीब, बूढ़े-जवान, सबल-निर्बल सभी स्त्री-पुरुष कर सकते हैं।

(3) आसनों में जहां मांसपेशियों को तानने, सिकोड़ने और ऐंठने वाली क्रियायें करनी पड़ती हैं, वहीं दूसरी ओर साथ-साथ तनाव-खिंचाव दूर करनेवाली क्रियायें भी होती रहती हैं, जिससे शरीर की थकान मिट जाती है और आसनों से व्यय शक्ति वापिस मिल जाती है। शरीर और मन को तरोताजा करने, उनकी खोई हुई शक्ति की पूर्ति कर देने और आध्यात्मिक लाभ की दृष्टि से भी योगासनों का अपना अलग महत्त्व है।

(4) योगासनों से भीतरी ग्रंथियां अपना काम अच्छी तरह कर सकती हैं और युवावस्था बनाए रखने एवं वीर्य रक्षा में सहायक होती है।

(5) योगासनों द्वारा पेट की भली-भांति सुचारु रूप से सफाई होती है और पाचन अंग पुष्ट होते हैं। पाचन-संस्थान में गड़बड़ियां उत्पन्न नहीं होतीं।

(6) योगासन मेरुदण्ड-रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाते हैं और व्यय हुई नाड़ी शक्ति की पूर्ति करते हैं।

(7) योगासन पेशियों को शक्ति प्रदान करते हैं। इससे मोटापा घटता है और दुर्बल-पतला व्यक्ति तंदरुस्त होता है।

(8) योगासन स्त्रियों की शरीर रचना के लिए विशेष अनुकूल हैं। वे उनमें सुन्दरता, सम्यक-विकास, सुघड़ता और गति, सौन्दर्य आदि के गुण उत्पन्न करते हैं।

(9) योगासनों से बुद्धि की वृद्धि होती है और धारणा शक्ति को नई स्फूर्ति एवं ताजगी मिलती है। ऊपर उठने वाली प्रवृत्तियां जागृत होती हैं और आत्मा-सुधार के प्रयत्न बढ़ जाते हैं।

(10) योगासन स्त्रियों और पुरुषों को संयमी एवं आहार-विहार में मध्यम मार्ग का अनुकरण करने वाला बनाते हैं, अत: मन और शरीर को स्थाई तथा सम्पूर्ण स्वास्थ्य, मिलता है।

(11) योगासन श्वास- क्रिया का नियमन करते हैं, हृदय और फेफड़ों को बल देते हैं, रक्त को शुद्ध करते हैं और मन में स्थिरता पैदा कर संकल्प शक्ति को बढ़ाते हैं।

(12) योगासन शारीरिक स्वास्थ्य के लिए वरदान स्वरूप हैं क्योंकि इनमें शरीर के समस्त भागों पर प्रभाव पड़ता है और वह अपने कार्य सुचारु रूप से करते हैं।

(13) आसन रोग विकारों को नष्ट करते हैं, रोगों से रक्षा करते हैं, शरीर को निरोग, स्वस्थ एवं बलिष्ठ बनाए रखते हैं।

(14) आसनों से नेत्रों की ज्योति बढ़ती है। आसनों का निरन्तर अभ्यास करने वाले को चश्में की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।

(15) योगासन से शरीर के प्रत्येक अंग का व्यायाम होता है, जिससे शरीर पुष्ट, स्वस्थ एवं सुदृढ़ बनता है। आसन शरीर के पांच मुख्यांगों, स्नायु तंत्र, रक्ताभिगमन तंत्र, श्वासोच्छवास तंत्र की क्रियाओं का व्यवस्थित रूप से संचालन करते हैं जिससे शरीर पूर्णत: स्वस्थ बना रहता है और कोई रोग नहीं होने पाता। शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आत्मिक सभी क्षेत्रों के विकास में आसनों का अधिकार है। अन्य व्यायाम पद्धतियां केवल वाह्य शरीर को ही प्रभावित करने की क्षमता रखती हैं, जब कि योगसन मानव का चहुँमुखी विकास करते हैं। 


Yogi Dr Anoop Kumar Bajpai

Gurgaon 8882916065

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