डॉ योगी
अनूप
कुमार
बाजपेयी
आयुष योग
एवं
प्राकृतिक
चिकित्सा
केंद्र
गुडगाँव, म.
8882916065 email: yogawithanu@gmail.com
जैसा की
आजकल सभी लोग
तनाव और मानसिक
परेशानियों से जूझ
रहे है साथ
ही गलत खानपान,
नींद की कमी,
अवसाद, काम की
अधिकता और कम
समय में अधिक
संग्रह की होड़
से आज का
युवा हाइपरटेंशन यानि
उच्य रक्तचाप के
प्रभाव में बहुत
ही जल्दी आ
रहे है : अतः
उच्य रक्तचाप को
योग एवं प्राणायाम
के द्वारा कैसे
नियंत्रित या ठीक
करे आइये आज
आपको कुछ बहुत
ही महत्वपूर्ण प्राणायाम
के बारे में
बताते है यदि
आप इनका निरंतर
कर प्रतिदिन अभ्यास
करेंगे तो आप
अवश्य ही इस
गंभीर बीमारी को
मात दे पाएंगे ।
योग पिछले
कई दशकों से
आधुनिक बिमारियों जैसे मानसिक
तनाव, मोटापा, डायबिटीज,
उच्य रक्तचाप, ह्रदय
घात, गंभीर श्वशन
रोग, दमा, अस्थमा
एवं माइग्रेन आदि
रोगों में चिकित्सीय
उद्देश्य में अनुशंधान
का प्रमुख विषय
बना हुआ है
। अनेक शोध
अध्ध्यनों से स्पस्ट
है की योग
के द्वारा प्राचीनकाल
से ही अनेक
तरह की रोगों
एवं गंभीर बिमारियों
को ठीक करने
में सहायक है,
साथ ही इसके
अभूतपूर्व लाभ एवं
प्रभाव देखने में आते
है। वर्तमान में
जितने भी शोध
कार्य हो रहे
है उनमे योगासन
एवं प्राणायाम के
माधयम अनेक रोंगो
का इलाज सफलतापूर्वक
किया जा रहा
है। योग द्वारा
इन रोगों को
बिना किसी औषधि
से ठीक कर
रहे है ।
योग, प्राणायाम, ध्यान
आदि की निरंतर
अभ्यास से अनेक
रोगों से बचा
जा सकता है।
आजकल लोगों में
आम धारणा यह
है की योग
के द्वारा सिर्फ
बीमारियों को सही
किया जाता है
और जब आप
रोगग्रस्त हो तो
योग करे है
जबकि योग इससे
भी कही आगे
है का विज्ञान
है ।
योग
एक आध्यत्मिक प्रक्रिया एवं
विज्ञान है, जिसके द्वारा शरीर, मन (इन्द्रियों) और आत्मा को एक साथ लाने का कार्य
ही योग है । इस प्रकार ‘योग शब्द का अर्थ हुआ- समाधि अर्थात् चित्त वृत्तियों का निरोध
। महर्षि पतंजलि ने योगदर्शन में, जो परिभाषा दी है वो इस प्रकार है 'योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः', चित्त की वृत्तियों
के निरोध का नाम योग है।
जैसे
की आपको पता
है अष्टांग योग
के अनुसार इसके
आठ अंग है,
यम, नियम, आसन,
प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान
और समाधी !
प्राणायाम:योग साधना के आठ अंग हैं,
जिनमें प्राणायाम चौथा सोपान है। प्राणायाम के बाद प्रत्याहार, ध्यान, धारणा तथा समाधि
मानसिक साधन हैं। प्राणायाम दोनों प्रकार की साधनाओं के बीच का साधन है, अर्थात् यह
शारीरिक भी है और मानसिक भी। प्राणायाम से शरीर और मन दोनों स्वस्थ एवं पवित्र हो जाते
हैं तथा मन का निग्रह होता है।तस्मिन सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेद:प्राणायाम॥ श्वास प्रश्वास के गति को अलग करना प्राणायाम
है। प्राण अर्थात् साँस आयाम याने दो साँसो मे दूरी बढ़ाना, श्वास
और नि:श्वास की गति को नियंत्रण कर रोकने व निकालने की क्रिया को प्राणायाम कहा जाता है। श्वास-लेने सम्बन्धी खास तकनीकों द्वारा प्राण
पर नियंत्रण श्वास नियंत्रण और सांस लेने की तकनीक का अभ्यास जागरूकता के साथ करना,
श्वास को धीमा और सूक्ष्म बनाना। साँस लेना और छोड़ने के बीच का ठहराव समाप्त हो जाता
है। यह मन और एकाग्रता (dranrana) के नियंत्रण में मदद करता है।
कैसे शुरू करे
:
प्रातःकाल नित्यकिरया से निमित्य
होकर शांत मन
से स्वच्य जगह
में हल्का सूक्ष्म
व्याम करे और
फिर प्राणायाम का
अभ्यास शुरू करे
:
योग एवं प्राणायाम
१. नाड़ीशोधन प्राणायाम ५ मिनट्स
पद्मासन
में बैठकर दाहिने
हाथ से दाया
नाशिका को बंद
करे और बायीं
नासिका से १०
आवृति पूरक रेचक
करे यानि श्वास
को अंदर बाहर
करे : फिर यही
क्रम दाहिनी नासिका
से दोहराये :
२. शीतली/शीतकार
प्राणायाम ५ मिनिट्स
पद्मासन में में
ज्ञान मुद्रा में
बैठे कमर गर्दन
एकदम सीधा रखे
और जिह्वा को
नलिका नुमा बनाते
हुए श्वास को
अंदर खींचे और
नासिका से धीरे
धीरे बाहर निकाले
: १० आवृति करे
इसके पश्चात् जिह्वा
को तालुमूल से
लगाकर ऊपर निचे
के दन्त पंक्ति
को एकदम सटाकर
ओंठों को खोलकर
धीरे धीरे सी
सी की आवाज
करते हुए मुँह
से श्वास लेकर
फेफड़ों में भरे
जीतनी देर आराम
से रुक सके
रुके फिर मुँह
बंद करके नाक
से धीरे धीरे
श्वास बाहर निकले
! इस क्रिया का
अभ्यास ८-१०
बार करे !
३. चंद्र भेदी
प्राणायाम ५ मिनट्स
बांया स्वर चंद्र
नाड़ी और दाहिना
स्वर सूर्य नाड़ी
से जाना जाता
है :
पद्मासन
में बैठकर प्राणायाम
मुद्रा बना ले
और दाहिने नासिका
को बंद करके
बायीं नासिका से
पूरक यानि श्वास
को अंदर खींचे
तत्पश्चात दाहिने नासिका से
श्वास को रेचक
करे/ बहार करे
४. उद्गीत / ओम
का
उच्चारण ५
मिनट्स
सुखासन
या पद्मासन में
ज्ञानमुद्रा में दोनों
हांथों को रखकर
शांत मन से
लम्बा गहरा श्वास
भरे और ओम
का उच्चारण करे
और लगातार करते
रहे पुरे शरीर
को देखें और
उद्गीत प्राणायाम करते रहें.
५. भ्रामरी प्राणायाम ५ मिनट्स
इस
प्राणायाम में भवरे
की गुंजन जैसी
ध्वनि निकलती है
इसलिए इसे "भ्रामरी
प्राणायाम" कहते है
किसी निर्धारित स्थान
में बैठकर आँख
बंद करके दोनों
हांथो की तर्जनी
से दोनों कान
बंद कर ले,
गहरी श्वास लेते
हुए कुछ देर
के लिए श्वास
अंदर रोके फिर
गले से भ्रमर
की तरह आवाज
निकलते हुए धीरे
धीरे रेचक करे
! मुँह बंद करते
हुए नाक से
रेचक करना चाहिए
!
प्राणायाम से होने
वाले
लाभ
:
१.
७२ हजार नाड़िया
शुद्ध होती है
रक्त में आक्सीजन
बढ़ता है और
ब्लड सर्कुलेशन ठीक
होता है और
ऊर्जा का संचार
होता है, जो
मन को स्वस्थ
एवं प्रसन्न रखता
है !
२. इन प्राणायाम
के नियमित अभ्यास
से ह्रदय रोग,
उच्च रक्तचाप, मानसिक
तनाव में लाभ
मिलता है
३. इन प्राणयाम
से गले सम्बंधित
समस्त रोगों जैसे
टॉंसिलिटिस आदि में
लाभ होता है
४. प्राणायाम के अभ्यास
अनिद्रा की स्थति,
मानसिक तनाव और
उत्तेजना को दूर
करता है !
५. इन प्राणयाम
से नाक, कान,
और आँख के
रोगों में लाभ
मिलता है और
स्वर को मधुर
बनता है!
६. इन प्राणयाम
से उच्च रक्तचाप,
वात, पित्त और
कफ में आराम
मिलता है :
७. नाड़ी शोधन
प्राणायाम से रक्त
शुद्ध होता है
और आक्सीजन का
लेवल इनक्रीस होता
है
८. भ्रस्तिका प्राणायाम से
फेफड़ों की विषाक्त
वायु को दूर
कर, फेफड़े गले
व् छाती के
श्वास, दमा, क्षय आदि रोग दूर होते
है
९. प्राणायाम से मस्तिष्क
के अग्रभाग का
शोधन होता है
जो मन की
चंचलता को दूर
करता है !
१०. प्राणायाम से चेहरे
की त्वचा में
प्राण के संचार
को बढ़ाकर, मुहासे,
झुर्रिया को दूर
करता है
सावधानियां
प्राणयाम
का अभ्यास धीरे
धीरे करे कोई
जल्दीबाजी से न
करे, मन को
शांत चित करके
ही प्राणायाम का
प्रारम्भ करे तभी
इसके अभूतपूर्व लाभ
देखने को मिलेंगे
!
अंत में
५ मिनट्स के
लिए ध्यान लगाए,
जो आराम दायक
मुद्रा हो जैसे
पद्मासन, सुखासन, आदि में
शांत बैठकर प्रभु
का ध्यान करते
हुए ध्यान लगाए
और मन की
आँखों को नाक
में लगाए; और
शांतचित होकर बैठे
रहे और मानसिक
जाप करते रहे
की मै शारीरिक
रूप से ठीक
हो रहा हूँ
और मेरे अंदर
एक सकारात्मक ऊर्जा
का संचार हो
रहा है और
मै रोगमुक्त हो
रहा हूँ दोस्तों
यकीन मानिये आप
अपने को हील
कर सकते है
यदि आप में
पक्का इरादा है
; क्योकि मानव शरीर
में खुद को
हील करने की
अद्भुद क्षमता है तो
आप निश्चिंत रहे
यदि आप नित्य
ही अपने आप
को सुझाव देंगे
तो अवश्य ही
आप रोगमुक्त एवं
तनाव मुक्त हो
जायेंगे ऐसा विश्वास
रखें !
सुझाव
किसी योगाचार्य के
निर्देशन
में
सीखे
फिर
अभ्यास
का
आरम्भ
करे
:
वर्तमान समय में अपनी
व्यस्त जीवन शैली से आराम और संतोष पाने के लिए योग की तरफ रुख कर रहे है। क्योंकि
योग केवल शारीरिक व्यायाम के साथ साथ आत्मिक सुख प्रदान करता है, इससे तनाव दूर होकर
मन और मष्तिस्क को भी शांति मिलती है । योग न केवल हमारे मष्तिस्क को बल प्रदान करता
है बल्कि हमारी आत्मा को शुद्ध कर खुद से परिचय करवाता है ।